________________ का। खममाणे-क्षमण-तप करते हुए अर्थात् एक मास के उपवास के बाद पारणा करने वाले। विहरइविहरण कर रहे थे। तएणं-तदनन्तर।से-वह।सुदत्ते-सुदत्त ।अणगारे-अनगार।मासक्खमणपारणगंसिमासक्षमण के पारणे में। पढमपोरिसीए-प्रथमपौरुषी में। सज्झायं-स्वाध्याय। करेइ-करते हैं। जहायथा। गोयमसामी-गौतमस्वामी। तहेव-तथैव / धम्मघोसे-धर्मघोष। थेरे-स्थविर को। आपुच्छइ-पूछते हैं। जाव-यावत्-भिक्षार्थ। अडमाणे-भ्रमण करते हुए उन्होंने। सुमुहस्स-सुमुख। गाहावइस्स-गाथापति के। गिह-घर में। अणुपविटे-प्रवेश किया अर्थात् भ्रमण करते हुए सुमुख गाथापति के घर में प्रविष्ट हुए। __ मूलार्थ-इस प्रकार निश्चय ही हे गौतम ! उस काल और उस समय इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष में हस्तिनापुर नाम का एक ऋद्ध, स्तिमित तथा समृद्ध नगर था। वहां सुमुख नाम का एक धनाढ्य गाथापति रहता था जोकि यावत् नगर का मुखिया माना जाता था। . ___ उस काल और उस समय जातिसम्पन्न यावत् पांच सौ श्रमणों से परिवृत्त हुए धर्मघोष नामक स्थविर क्रमपूर्वक चलते हुए और ग्रामानुग्राम विचरते हुए हस्तिनापुर नगर के सहस्राम्रवन नामक उद्यान में पधारे।वहां यथाप्रतिरूप अवग्रह-बस्ती को ग्रहण कर संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विहरण करने लगे। ___ उस काल और उस समय श्री धर्मघोष स्थविर के अन्तेवासी-शिष्य उदार यावत् तेजोलेश्या को संक्षिप्त किए हुए सुदत्त नाम के अनगार मासिक क्षमण-तप करते हुए विहरण कर रहे थे, साधुजीवन बिता रहे थे। तदनन्तर सुदत्त अनगार मासक्षमण के पारणे में पहले प्रहर में स्वाध्याय करते हैं। जैसे गौतमस्वामी प्रभुवीर से पूछते हैं वैसे ही ये श्री धर्मघोष स्थविर से पूछते हैं, यावत् भिक्षा के लिए भ्रमण करते हुए उन्होंने सुमुख गाथापति के घर में प्रवेश किया। टीका-श्री गौतम अनगार के प्रश्र के उत्तर में भगवान् ने सुबाहुकुमार के पूर्वभव का वृत्तान्त सुनाना आरम्भ करते हुए काल और समय इन दोनों का कथन किया है। इस से स्पष्ट सिद्ध है कि ये दोनों अलग-अलग पदार्थ हैं। जैसे-लोक में व्यापारी लोग खाते में सम्वत् और मिति दोनों का उल्लेख करते हैं। उस में केवल सम्वत् लिख दिया जाए और मिति न लिखी जाए तो वह बहीखाता प्रामाणिक नहीं माना जाता, उस की प्रामाणिकता के लिए दोनों का उल्लेख आवश्यक होता है। वैसे ही सूत्रकार ने काल और समय दोनों का प्रयोग किया है। काल शब्द सम्वत् के स्थानापन्न है और समय मिति के स्थान का पूरक है। तब उस काल और समय का यह अर्थ निष्पन्न होता है कि इस अवसर्पिणी के चतुर्थकाल-चौथे आरे में और उस समय जब कि सुबाहुकुमार सुमुख गाथापति के भव से इस भव में आया था। जब तक स्थान को न जान लिया जाए तब तक उस स्थान पर होने वाली किसी भी द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [875