________________ इसलिए यह भिक्षा वृत्ति के नाम से प्रसिद्ध है। जो मनुष्य हट्टा-कट्टा और स्वस्थ है, बलवान् है, कमा कर खाने के योग्य है परन्तु कमाना न पड़े इस अभिप्राय से मांग कर खाता है, उस की भिक्षा पुरुषार्थ की घातिका होने से पौरुषघातिनी मानी जाती है। सुदत्त अनगार की भिक्षा पहली श्रेणी की है अर्थात् सर्वसम्पत्करी भिक्षा है। यह भिक्षा के श्रेणीविभाग से अनायास ही सिद्ध हो जाता है। इस के अतिरिक्त इस भिक्षा में भी अध्यवसाय की प्रधानता के अनुसार फल की तरतमता होती है। भिक्षा देने वाले गृहस्थ के जैसे भाव होंगे उस के अनुसार ही फल निष्पन्न होता है। सुदत्त अनगार को घर में प्रवेश करते देख सुमुख गृहपति बड़ा प्रसन्न हुआ। उस का मन सूर्य-विकासी कमल की भाँति हर्ष के मारे खिल उठा। वह अपने आसन पर से उठ कर, नंगे पांव सुदत्त मुनि के स्वागत के लिए सात-आठ कदम आगे गया और उसने तीन बार आदक्षिण-प्रदक्षिणा कर के मुनि को भक्तिभाव से वन्दन-नमस्कार किया। तदनन्तर श्री सुदत्त * . मुनि का उचित शब्दों में स्वागत करता हुआ बोला कि प्रभो ! मेरा अहोभाग्य है। आज मेरा घर, मेरा परिवार सभी कुछ पावन हो गया। आप की चरणरज से पुनीत हुआ सुमुख आज अपने आप की जितनी भी सराहना करे उतनी ही कम है। इस प्रकार कहते हुए उसने श्री सुदत्त मुनि को भोजनशाला की ओर पधारने की प्रार्थना की और अपने हाथ से उन्हें निर्दोष आहार दे कर अपने आप को परम भाग्यशाली बनाने का स्तुत्य प्रयास किया। आहार देते समय उस के भाव इतने शुद्ध थे कि उन के प्रभाव से उस ने उसी समय मनुष्यभवसंबंधी आयु का पुण्य बन्ध कर लिया। तपस्विराज मुनि सुदत्त का सुमुख गृहपति के घर अकस्मात् पधारना भी किसी गंभीर आशय का सूचक है। सन्तसमागम किसी पुण्य से ही होता है। यह उक्ति आबालगोपाल प्रसिद्ध है और सर्वानुमोदित है। फिर एक तपोनिष्ठ संयमी एवं जितेन्द्रिय मुनिराज का समागम तो किसी पूर्वकृत महान् पुण्य को प्रकट करता है। श्री सुदत्त मुनि अनायास ही सुमुख गृहपति के घर आते हैं, इस का अर्थ है कि सुमुख का पूर्वोपार्जित शुभ कर्म उन्हें-सुदत्तमुनि को ऐसा करने की प्रेरणा करता है। अथवा प्रभावशाली तपस्विराज मुनिजनों का चरणन्यास वहीं पर होता है जहां पर पूर्वकृत शुभकर्म के अनुसार उपयुक्त समस्त सामग्री उपस्थित हो। वर्षा का जल किसी उपजाऊ भूमि में गिरे तभी लाभदायक होता है। बंजर भूमि में पड़ा हुआ वह फलप्रद नहीं होता। यही कारण है कि श्री सुदत्त मुनि सुमुख जैसी उपजाऊ भूमि में अनुग्रहरूप वर्षा बरसाने के लिए सजल मेघ के रूप में उस के घर में पधारे हैं। सच्चे दाता को दान का प्रसंग उपस्थित होने पर तीन बार हर्ष उत्पन्न होता है। 1 888 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [द्वितीय श्रुतस्कन्ध