________________ भगवान् कहते हैं-गौतम! इस सुमुख गृहपति का पुण्यशाली जीव ही धारिणी देवी के गर्भ में आकर सुबाहुकुमार के रूप में उत्पन्न हुआ है। इस से यह सुबाहुकुमार पूर्वजन्म में कौन था? इत्यादि प्रश्नों का उत्तर भली-भांति स्फुट हो जाता है। प्रस्तुत कथासन्दर्भ के उत्तर में गौतम स्वामी की ओर से किए गए प्रश्नों के उत्तर में भगवान् ने जो कुछ फरमाया, उस से निष्पन्न होने वाले सारांश की तालिका नीचे उद्धृत की जाती है- गौतमस्वामी श्रमण भगवान् महावीर १-प्रश्न-सुबाहुकुमार पूर्वभव में कौन था ? उत्तर-एक प्रसिद्ध गाथापति-गृहस्थ था। २-प्रश्न-इसका नाम क्या था ? उत्तर-सुमुख गाथापति। ३-प्रश्न-इसका गोत्र क्या था ? उत्तर-(सूत्रसंकलन के समय छूट गया है) ४-प्रश्न-इसने क्या दान दिया ? उत्तर-सुदत्त अनगार को आहार दिया था। ५-प्रश्न-इसने क्या खाया था ? उत्तर-मानवोचित सात्त्विक भोजन। ६-प्रश्न-इसने क्या कृत्य किया था ? उत्तर-भावनापुरस्सर दानकार्य किया था। ७-प्रश्न-इस ने किस शील का पालन किया उत्तर-पांचों शीलों का। था? ८-प्रश्न-इस ने किस तथारूप मुनि के वचन उत्तर-तपस्विराज श्री सुदत्त मुनि जी __ सुने थे? . महाराज के। सुबाहुकुमार के पूर्वभवसम्बन्धी जीवनवृत्तान्त में अधिकतया सुपात्रदान का महत्त्व वर्णित हुआ है, जोकि प्रत्येक मुमुक्षु जीव के लिए आदरणीय तथा आचरणीय है। .. शास्त्रों में चार प्रकार के मेघ बताये गए हैं। जैसे कि-१-क्षेत्र में बरसने वाले, 2 अक्षेत्र में बरसने वाले, ३-क्षेत्र-अक्षेत्र दोनों में बरसने वाले, ४-क्षेत्र-अक्षेत्र दोनों में न बरसने वाले। इसी प्रकार चार तरह के दाता होते हैं। जैसे कि-१-क्षेत्र-सुपात्र को देने वाले, २अक्षेत्र-कुपात्र को देने वाले, ३-क्षेत्र-अक्षेत्र-सुपात्र तथा कुपात्र दोनों को देने वाले, ४-क्षेत्रअक्षेत्र-सुपात्र और कुपात्र दोनों को न देने वाले। इस में तीसरी श्रेणी के दाता बड़े उदार होते हैं। वे सुपात्र को तो देते ही हैं परन्तु प्रवचनप्रभावना आदि के निमित्त कुपात्र को भी दान देते हैं / कुपात्र कर्मनिर्जरा की दृष्टि से चाहे दान के अयोग्य होता है परन्तु अनुकम्पा-करुणा बुद्धि से वह भी योग्य होता है। सभी दानों में सुपात्रदान प्रधान है, यह महती कर्मनिर्जरा का हेतु होता है, तथा दाता को जन्ममरणपरम्परा के भयंकर रोग से विमुक्त करने वाली रामबाण औषधि है। इस के सेवन से साधक आत्मा एक न एक दिन जन्म और मृत्यु के बन्धन से सदा के लिए छूट जाता है। इसके अतिरिक्त घर में आए हुए मुनिराज का अभ्युत्थानादि से किस प्रकार द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [895