________________ करते हैं। गृह के सुखों का परित्याग करके, सर्वथा गृहत्यागी बन कर विचरना एवं नानाविध परीषहों को सहन करना एक राजकुमार के लिए शक्य है कि नहीं, अर्थात् सुबाहुकुमार जैसे सद्गुणसम्पन्न सुकुमार राजकुमार के लिए उस कठिन संयमव्रत के पालन करने की संभावना की जा सकती है कि नहीं, यह गौतम स्वामी के प्रश्न में रहा हुआ अनगारता का रहस्यगर्भित भाव है। ३-प्रभु-पाठकों को स्मरण होगा कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की सेवा में उपस्थित हो कर उन की धर्मदेशना सुनने के बाद प्रतिबोध को प्राप्त हुए श्री सुबाहुकुमार ने भगवान् से कहा था कि प्रभो! इस में सन्देह नहीं कि आप के पास अनेक राजा-महाराजा और सेठ साहूकारों ने सर्वविरतिधर्म-साधुधर्म को अंगीकार किया है परन्तु मैं उस सर्वविरतिरूप साधुधर्म को ग्रहण करने में समर्थ नहीं हूँ, इसलिए आप मुझे देशविरतिधर्म को ग्रहण कराने की कृपा करें, अर्थात् मैं महाव्रतों के पालन में तो असमर्थ हूँ अतः अणुव्रतों का ही मुझे नियम कराएं। श्री सुबाहुकुमार के उक्त कथन को स्मृति में रखते हुए ही श्री गौतम स्वामी ने भगवान् से "-पभू णं भन्ते ? सुबाहकुमारे देवाणु० अंतिए मुडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए-" यह पूछने का उपक्रम किया है। इस प्रश्न में सब से प्रथम प्रभु शब्द का इसी अभिप्राय से प्रयोग किया जान पड़ता है। ___ भगवान्-हां गौतम ! है। अर्थात् सुबाहुकुमार मुण्डित हो कर सर्वविरतिरूप साधुधर्म के पालन करने में समर्थ है। उस में भावसाधुता के पालन की शक्ति है। भगवान् के इस उत्तर में गौतम स्वामी की सभी शंकाएं समाहित हो जाती हैं। _-हंता पभू-हंत प्रभुः-यहां हंत का अर्थ स्वीकृति होता है। अर्थात् हंत अव्यय स्वीकारार्थ में प्रयुक्त हुआ है। प्रभु समर्थ को कहते हैं। ... -संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणे-अर्थात् संयम और तप के द्वारा अपनी आत्मा को भावित करना। संयम के आराधन और तप के अनुष्ठान से आत्मगुणों के विकास में प्रगति लाने का यत्नविशेष ही आत्मभावना या आत्मा को वासित करना कहलाता है। जनपद-यह शब्द राष्ट्र, देश, जनस्थान और देशनिवासी जनसमूह आदि का बोधक है, किन्तु प्रकृत में यह राष्ट्र-देश के लिए ही प्रयुक्त हुआ है। २-से सुबाहुकुमारे समणोवासए जाए अभिग़यजीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे विहरइ-इन पदों में श्रमणोपासक का अर्थ और उस की योग्यता के विषय में वर्णन किया गया है। श्रमणोपासक शब्द का व्युत्पत्तिजन्य अर्थ क्या है तथा जीवाजीवादि पदार्थों का अधिगम करने वाला श्रमणोपासक कैसा होना चाहिए इन बातों पर विचार कर लेना भी उचित प्रतीत द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [905