________________ इसीलिए तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत आचार्यों ने संकलित किए हैं। वे सातों व्रत भी . नितान्त उपयोगी हैं। इसी दृष्टि से अणुव्रतों के साथ इन को परिगणित किया गया है। ___ -समणं भगवं-यहां का बिन्दु-महावीरं आइगरं-इत्यादि पदों का परिचायक है। इन पदों का अर्थ प्रथम श्रुतस्कंध के दशमाध्याय में लिखा जा चुका है। अन्तर मात्र इतना है कि वहां ये पद तृतीयान्त हैं जबकि प्रस्तुत में द्वितीयान्त। विभक्तिगत विभिन्नता के अतिरिक्त अर्थगत कोई भेद नहीं है। . ___ -जहा कूणिए-यथा कूणिकः-इस का तात्पर्य यह है कि जिस तरह चम्पा नामक नगरी से महाराज कूणिक बड़ी सजधज के साथ भगवान् को वन्दना करने के लिए गए थे, उसी भान्ति महाराज अदीनशत्रु भी हस्तिशीर्ष नगर से बड़े समारोह के साथ भगवान् को वन्दना करने के लिए गए। चम्पानरेश कूणिक के गमनसमारोह का वर्णन श्री औपपातिक सूत्र में किया गया है, पाठकों की जानकारी के लिए उसका सारांश नीचे दिया जाता है- .. ___ श्रेणिक पुत्र महाराज कूणिक मगधदेश के स्वामी थे। चम्पानगरी उन की राजधानी थी। एक बार आप को एक सन्देशवाहक ने आकर यह समाचार दिया कि जिन के दर्शनों की आप को सदैव इच्छा बनी रहती है, वे श्रमण भगवान् महावीर स्वामी चम्पानगरी के बाहर उद्यान में पधार गए हैं। चम्पानरेश इस सन्देश को सुन कर पुलकित हो उठे। सन्देशवाहक को पर्याप्त पारितोषिक देने के अनंतर स्नानादि से निवृत्त हो तथा वस्त्रालंकारादि से अलंकृत हो कर वे अपने सभास्थान में आए, वहां आकर उन्होंने सेनानायक को बुलाया और उस से कहा कि हे भद्र ! प्रधान हाथी को तैयार करो तथा घोड़ों, हाथियों, रथों और उत्तम योद्धाओं वाली चतुरंगिणी सेना को सुसज्जित करो। सुभद्राप्रमुख रानियों के लिए भी यान आदि तैयार करके बाहर पहुंचा दो और चम्पानगरी को हर तरह से स्वच्छ एवं निर्मल बना डालो। जल्दी जाओ और अभी मेरी इस आज्ञा का पालन करके मुझे सूचित करो। इस के पश्चात् सेनानायक ने राजा की इस आज्ञा का पालन करके उन्हें संसूचित किया। चम्पानरेश अपनी आज्ञा के पालन की बात जान कर बड़े प्रसन्न हुए। तदनन्तर महाराज कूणिक व्यायामशाला में गए। वहां पर नाना विधियों से व्यायाम करने के अनन्तर शतपाक और सहस्रपाक आदि सुगन्धित तैलों के द्वारा उन्होंने अस्थि, मांस, त्वचा और रोमों को सुख पहुंचाने वाली मालिश कराई। तदनन्तर स्नानगृह में प्रवेश किया और वहां स्नान करने के पश्चात् उन्होंने स्वच्छ वस्त्रों और उत्तमोत्तम आभूषणों को धारण किया। तदनन्तर गणनायकगण का मुखिया, दण्डनायक-कोतवाल, राजा-मांडलिक (किसी प्रदेश का स्वामी), ईश्वरयुवराज, तलवर-राजा ने प्रसन्न होकर जो पट्टबन्ध दिया है उस से विभूषित, माडम्बिक 850] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [द्वितीय श्रुतस्कन्ध