________________ आभरणादिरूप लक्ष्मी से युक्त, सर्वप्रकार की द्युति-सकल वस्त्राभूषणादि की प्रभा से युक्त, . सर्व प्रकार के बल-सैन्य से युक्त, सर्वप्रकार के समुदाय-नागरिकों के और राजपरिवार के समुदाय से युक्त, सर्व प्रकार के आदर-उचित कार्यों के सम्पादन से युक्त, सर्व प्रकार की विभूति-ऐश्वर्य से युक्त, सर्वप्रकार की विभूषा-वेषादिजन्य शोभा से युक्त, सर्वप्रकार के संभ्रम-भक्तिजन्य उत्सुकता से युक्त, सर्वपुष्पों, गन्धों-सुगन्धित पदार्थों, मालाओं और अलंकारोंभूषणों से युक्त, इसी प्रकार 'महान् ऋद्धि आदि से युक्त चम्पानरेश कूणिक शंख, पटह आदि अनेकविध वादित्रों-बाजों के साथ महान् समारोह के साथ चम्पानगरी के मध्य में से हो कर निकले। इन के सन्मुख दासपुरुषों ने श्रृंगार-झारी उठा रखी थी, इन्हें उपलक्ष्य कर के दासपुरुषों ने पंखा उठा रखा था, इन के ऊपर श्वेत छत्र किया हुआ था तथा इन के ऊपर छोटेछोटे चमर ढुलाए जा रहे थे। . जब चम्पानरेश चम्पानगरी के मध्य में से हो कर निकल रहे थे तब बहुत से अर्थार्थीधन की कामना रखने वाले, भोगार्थी-भोग (मनोज्ञ गन्ध, रस और स्पर्श) की कामना करने वाले, किल्विषिक-दूसरों की नकल करने वाले नकलिए, कारोटिक-भिक्षुविशेष अथवा पानदान को उठाने वाले, लाभार्थी-धनादि के लाभ की इच्छा रखने वाले, कारवाहिक - महसूल से पीड़ित हुए, शंखिक-चन्दन से युक्त शंखों को हाथों में लिए हुए, चक्रिक-चक्राकार शस्त्र को धारण करने वाले, अथवा कुम्भकार-कुम्हार और तैलिक-तेली आदि, नङ्गलिककिसान, मुखमाङ्गलिक-प्रिय वचन बोलने वाले, वर्धमान-स्कन्धों पर उठाए पुरुष; पुष्यमानवस्तुतिपाठक, छात्रसमुदाय ये सब इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मनोऽम, मनोअभिराम और हृदयगमनीय वचनों द्वारा, "-महाराज की जय हो, विजय हो-" इस प्रकार के सैंकड़ों मंगल वचनों के द्वारा निरन्तर अभिनन्दन-सराहना तथा स्तुति करते हुए इस प्रकार बोलते हैं हे समृद्धिशाली महाराज ! तुम्हारी जय हो, हे कल्याण करने वाले महाराज ! तुम्हारी विजय हो, आप फूलें और फलें। न जीते हुए शत्रुओं पर विजय प्राप्त करें, जो जीते हुए हैं उन का पालन-पोषण करें और सदा जीते हुओं के मध्य में निवास करें। देवों में इन्द्र के समान, असुरों में चमरेन्द्र के समान, नागों में धरणेन्द्र के समान, ताराओं में चन्द्रमा के समान, मनुष्यों में भरत चक्रवर्ती के समान बहुत से वर्षों, बहुत से सैंकड़ों वर्षों, बहुत से हजार वर्षों, बहुत से लाखों वर्षों तक निर्दोष परिवार आदि से परिपूर्ण और अत्यन्त 1. प्रस्तुत में सब प्रकार की ऋद्धि से युक्त आदि विशेषण ऊपर दिए ही जा चुके हैं। फिर महान् ऋद्धि से युक्त आदि विशेषणों की क्या आवश्यकता है ? यह प्रश्न उपस्थित होता है। इस का उत्तर प्रथम श्रुतस्कंध के . नवम अध्याय के टिप्पण में दिया जा चुका है। 2. इष्ट, कान्त, प्रिय आदि पदों की व्याख्या भी पीछे नवम अध्याय में की जा चुकी है। . 852 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [द्वितीय श्रुतस्कन्ध