________________ आपत्ति को दूर करने के लिए कान्त आदि पद दिए हैं, कान्त का अर्थ होता है-कामनीयसुन्दर और कान्तरूप का अर्थ है-सुन्दर स्वभाव वाला। सुबाहुकुमार की इष्टता में उस का सुन्दर स्वभाव ही कारण था) एवंविधोऽपि कश्चित् कर्मदोषात् परेषां प्रीतिं नोत्पादयेदित्यत आह-प्रियः-प्रेमोत्पादक;, प्रियरूप:-प्रीतिकारिस्वरूपः (सुन्दर स्वभाव होने पर भी कर्म के प्रभाव से कोई दूसरों में प्रीति उत्पन्न करने में असमर्थ रह सकता है, इस आशंका के निवारणार्थ प्रिय और प्रियरूप ये विशेषण दिए हैं। प्रेम का उत्पादक प्रिय और जिस का रूप प्रिय-प्रीति का उत्पादक हो उसे प्रियरूप कहते हैं) एवंविधश्च लोकरूढितोऽपि स्यादित्यत आह-मनोज्ञः-मनसाऽन्तः संवेदनेन शोभनतया ज्ञायत इति मनोज्ञः एवं मनोज्ञरूपः (कोईकोई लोगों के व्यवहार में प्रियरूप होता है और वास्तव में नहीं होता, इस आशंका के निवारणार्थ मनोज्ञादि का प्रयोग किया गया है। आन्तरिक वृत्ति से जिस की शोभनता अनुभव में आए वह मनोज्ञ, उस के रूप वाला मनोज्ञरूप कहलाता है) एवंविधश्चैकदापि स्यादित्यत आह"मणोमेति" मनसा अम्यते गम्यते पुनः पुनः संस्मरणतो यः स मनोमः, एवं मनोमरूपः (किसी की मनोज्ञता तात्कालिक हो सकती है, यह ऐसा सुबाहुकुमार के विषय में न समझ लिया जाए, एतदर्थ मनोम विशेषण दिया है, जिस की सुन्दरता का स्मरण पुनः पुन:-बारंबार किया जाए, वह मनोम और उसके रूप को मनोमरूप कहते हैं) एतदेव प्रपंचयन्नाह"सोमे"त्ति अरौद्रः सुभगो वल्लभः,"पियदंसणे"त्ति प्रेमजनकाकारः किमुक्तं भवति? "सुरूवे"त्ति शोभनाकारः सुस्वभावो वेति-(इस पूर्वोक्त सुन्दरता के विस्तार के लिए ही सोम इत्यादि पदों का संनिवेश किया गया है। रुद्रतारहित व्यक्ति सोम-सौम्य स्वभाव वाला होता है और वल्लभता वाला-इस अर्थ का सूचक सुभगशब्द है, प्रेम का जनक-उत्पादक आकार और उस आकार वाला प्रियदर्शन कहलाता है। सुन्दर आकार तथा सुन्दर स्वभाव वाले को सुरूप कहते हैं) एवंविधश्चैकजनापेक्षयापि स्यादित्यत आह-"बहुजणस्स य वि" इत्यादि (सुबाहुकुमार की सुन्दरता, प्रियता और मनोज्ञता आदि गुणसंहति-गुणसमूह एक व्यक्ति की अपेक्षा भी मानी जा सकती है, इस के निराकरण के लिए बहुजन विशेषण दिया है अर्थात् सुबाहुकुमार किसी एक व्यक्ति को ही प्रिय नहीं था किन्तु बहुत से लोगों को वह प्रिय था ) एवंविधश्च प्राकृतजनापेक्षयापि स्यादित्यत आह -“साहुजणस्स यावि" इत्यादि (अनेकों मनुष्यों की प्रियता का अर्थ प्राकृतपुरुषों-साधारण मनुष्यों तक ही सीमित हो, ऐसा भी हो सकता है। इसलिए सूत्रकार ने साधुजन विशेषण दे कर उस का निराकरण कर दिया है। तात्पर्य यह है कि सुबाहुकुमार केवल सामान्य जनता का ही प्रियभाजन नहीं था अपितु साधुजनों को भी वह प्यारा था। साधु शब्द के दो अर्थ हो सकते हैं-१-विशिष्टप्रतिभाशाली 864 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [द्वितीय श्रुतस्कन्ध