________________ वह स्पष्ट हो जाती है। ___ इष्ट रूप अनुकूल होता है और कान्त मनोहरता को लिए हए होता है। तथा प्रिय और प्रियरूप का हार्द यह है कि कोई वस्तु इष्ट और कान्त होने पर भी प्रीति के योग्य नहीं होती। उदाहरण के लिए-एक बर्तन में पके हुए आमों का रस और दूसरे में मूंगी की पकी हुई दाल है। क्षुधातुर व्यक्ति के सामने दोनों के उपस्थित किए जाने पर दोनों में भूख को शान्त करने की समान शक्ति होने पर भी वह आम रस को चाहेगा। इसी तरह संसार में इष्ट और कमनीय तो बहुत हैं या होंगे परन्तु मुद्गरूप और आम्ररस में जो अन्तर है वही अन्य सांसारिक मनुष्यों और सुबाहुकुमार में दृष्टिगोचर होता है। जहां अन्य लोगों का रूप किसी को भाता और किसी को नहीं भाता है वहां सुबाहुकुमार सब को प्रिय लगता है। इसी प्रकार मनोज्ञ और मनोज्ञरूप के विषय में भी निम्नलिखित विवेक है कई वस्तुएं ऐसी होती हैं, जिन से प्रीति तो होती है परन्तु वे मनोज्ञ नहीं होती अर्थात् उन से मन और इन्द्रियों को शान्ति नहीं मिलती। कोई भोज्य वस्तु ऐसी भी होती है जो इष्टकमनीय और प्रिय होने पर भी खाने के पश्चात् विकार उत्पन्न कर देने के कारण मनोज्ञ नहीं रहती। जैसे आमातिसार के रोगी को प्रिय होने पर भी आम का रस हानिप्रद होता है। ज्वर के रोगी को गरिष्ट भोजन स्वादिष्ट होने पर भी अहितकर होता है। सारांश यह है कि संसार में अनेक वस्तुएं हैं जो किसी के लिए मनोज्ञ और किसी के लिए अमनोज्ञ होती हैं। एक ही वस्तु मनोज्ञ होने पर भी सब के लिए मनोज्ञ नहीं होती, परन्तु सुबाहुकुमार इस त्रुटि से रहित है। उस का रूप तथा स्वयं वह सब के लिए मनोज्ञ है। तदनन्तर गौतम स्वामी ने सुबाहुकुमार को मनोम और मनोमरूप कहा है, अर्थात् सुबाहुकुमार लाभदायक और लाभदायक रूप वाला है। इस का तात्पर्य भी स्पष्ट है। कई वस्तु मनोज्ञ और पथ्य होने पर भी शक्तिप्रद नहीं होती। जिस वस्तु के सेवन से शरीरगत अस्थियोंहड्डियों को शक्ति मिले, वे मोटी हों, खून और चर्बी में पतलापन आवे वे उत्तम होती हैं। इस के विपरीत जो वस्तु शरीरगत अस्थियों-हड्डियों में पतलापन पैदा कर के, रुधिर आदि को गाढ़ा बनाती है वह अधर्म अर्थात् अनिष्टप्रद होती है। तात्पर्य यह है कि कोई वस्तु शरीर के किसी अंग को लाभ पहुंचाती है और किसी को हानि, परन्तु सुबाहुकुमार सभी को लाभ पहुंचाने वाला है, उस के यहां से कोई भी निराश हो कर नहीं लौटता, इसीलिए वह मनोम और मनोमरूप कहलाया। __ शीतल-सौम्य प्रकृति वाले को सोम कहते हैं। सोम नाम चन्द्रमा का भी है। जिस प्रकार उस की किरणें सब को प्रकाश और शीतलता पहुंचाती हैं, उसी प्रकार सुबाहुकुमार भी 862 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [द्वितीय श्रुतस्कन्ध