________________ हुआ, संशय बहुत हुआ, कौतूहल हुआ, बहुत कौतूहल हुआ, इसी भांति-इच्छा उत्पन्न हुई, बहुत इच्छा उत्पन्न हुई, संशय उत्पन्न हुआ, बहुत संशय उत्पन्न हुआ, कौतूहल उत्पन्न हुआ, बहुत कौतूहल उत्पन्न हुआ-इस सामान्य विशेष की भिन्नता को सूचित करने के लिए ही जात और उत्पन्न शब्द के साथ सम् उपसर्ग का संयोजन किया गया है। जात और उत्पन्न शब्दों में इतना ही अन्तर है कि उत्पन्न शब्द उत्पत्ति का और जात शब्द उसकी प्रवृत्ति का संसूचक है। अर्थात् पहले इच्छा, संशय और कौतूहल उत्पन्न हुआ तदनन्तर उस में प्रवृत्ति हुई। इस भांति उत्पत्ति और प्रवृत्ति का कार्यकारणभाव सूचित करने के लिए जात और उत्पन्न ये दोनों पद प्रयुक्त किए गए हैं। जातश्रद्ध आदि शब्दों का अधिक अर्थसंबन्धी ऊहापोह प्रथम श्रुतस्कंधीय प्रथमाध्याय में किया गया है। पाठक वहीं पर देख सकते हैं। जातश्रद्ध, जातसंशय, जातकौतूहल, संजातश्रद्ध, संजातसंशय, संजातकौतूहल, उत्पन्नश्रद्ध, उत्पन्नसंशय, उत्पन्नकौतूहल, समुत्पन्नश्रद्ध, समुत्पन्नसंशय तथा समुत्पन्नकौतूहल श्री गौतम स्वामी उत्थानक्रिया के द्वारा उठ कर जिस ओर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी विराजमान थे, उस ओर आते हैं, आकर श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार दक्षिण दिशा से आरम्भ कर के प्रदक्षिणा करके वन्दन करते हैं, नमस्कार करते हैं, नमस्कार कर के बहुत पास, न बहुत दूर इस प्रकार शुश्रूषा और नमस्कार करते हुए विनय से ललाट पर अञ्जलि रख कर भक्ति करते हुए। .. -इढे जाव सुरूवे-यहां पठित जाव-यावत् पद-इट्ठरूवे, कन्ते, कन्तरूवे, पिए, पियरूवे, मणुण्णे, मणुण्णरूवे, मणोमे, मणोमरूवे, सोमे, सुभगे, पियदसणे, सुरूवेइन पदों का परिचायक है। - -इमा एयारूवा-इन दोनों का अर्थ वृत्तिकार के शब्दों में-इयं प्रत्यक्षा एतद्पा , उपलभ्यमानस्वरूपैव अकृत्रिमेत्यर्थः-इस प्रकार है। अर्थात् यह प्रत्यक्षरूप से उपलब्ध होने वाली अकृत्रिम-जिस में किसी प्रकार की बनावट नहीं-ऐसी उदार मानवी ऋद्धि सुबाहुकुमार ने कैसे प्राप्त की? 1. १-ग्रसते बुद्धयादीन् गुणान् यदि वा गम्यः-शास्त्रप्रसिद्धानामष्टादशानां कराणामिति ग्रामः। २-न विद्यते करो यस्मिन् तन्नगरम्।३-निगमः-प्रभूततरवणिग्वर्गवासः।४-राजाधिष्ठानं नगरं राजधानी। ५-प्रांशुप्राकारनिबद्धंखेटम्।६-क्षुल्लप्राकारवेष्टितं कर्वटम्।७-अर्धगव्यूततृतीयान्तनामान्तररहितं मडम्बम्। ८-पट्टनं-जलस्थलनिर्गमप्रदेशः, (पट्टनं शकटैः गम्यं घोटकैः नौभिरेव च। नौभिरेव तु यद्गम्यं पत्तनं तत्प्रचक्षते), ९-द्रोणमुखं-जलनिर्गमप्रवेशं पत्तनमित्यर्थः। १०-आकरो हिरण्याकरादिः। ११:-आश्रमः तापसावसथोपलक्षितः आश्रमविशेषः। १२-संवाधो यात्रासमागतप्रभूतजननिवेशः। १३-संनिवेश:तथाविधप्राकृतलोकनिवासः। -(राजप्रश्नीय सूत्रं-वृत्तिकारो मलयगिरि सूरिः) द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [867