________________ ६-वस्त्र-पहनने, ओढ़ने के वस्त्रों की यह मर्यादा करना कि मैं अमुक जाति के अमुक वस्त्रों से अधिक वस्त्र नहीं लूंगा। ७-कुसुम-फूल, इत्र, (अतर), तेल तथा सुगन्धादि पदार्थों की मर्यादा करना। ८-वाहन-हाथी, घोड़ा, ऊंट, गाड़ी, तांगा, मोटर, रेल, नाव, जहाज आदि सब वाहनों की मर्यादा करना। ९-शयन-शय्या, पाट, पलंग आदि पदार्थों की मर्यादा करना। १०-विलेपन-शरीर पर लेपन किए जाने वाले केसर, चन्दन, तेल, साबुन, अंजन, मञ्जन आदि पदार्थों की मर्यादा करना। .११-ब्रह्मचर्य-स्वदारसन्तोष की मर्यादा को यथाशक्ति संकुचित करना। पुरुष का पत्नीसंसर्ग के विषय में और स्त्री का पतिसंसर्ग के विषय में त्याग अथवा मर्यादा करना। १२-दिशा-दिक्परिमाणव्रत स्वीकार करते समय आवागमन के लिए मर्यादा में जो क्षेत्र जीवन भर के लिए रखा है, उस क्षेत्र का भी संकोच करना तथा मर्यादा करना। १३-स्नान-देश या सर्व स्नान के लिए मर्यादा करना। शरीर के कुछ भाग को धोना देश-स्नान है तथा शरीर के सब भागों को धोना सर्वस्नान कहलाता है। १४-भत्त-भोजन, पानी के सम्बन्ध में मर्यादा करना कि मैं आज इतने प्रमाण से अधिक न खाऊंगा और न पीऊंगा। कई लोग इन चौदह नियमों के साथ असि,मसि और कृषि इन तीनों को और मिलाते हैं। ये तीनों कार्य आजीविका के लिए किए जाते हैं। आजीविका के लिए जो कार्य किये जाते हैं उन में से पन्द्रह कर्मादानों का तो श्रावक को त्याग होता ही है, शेष जो कार्य रहते हैं उन के विषय में भी यथाशक्ति मर्यादा करनी चाहिए। असि आदि पदों का अर्थसम्बन्धी ऊहापोह निम्नोक्त है . .१-असि-शस्त्र-औजार आदि के द्वारा परिश्रम कर के अपनी आजीविका चलाना। . २-मसि-कलम दवात, कागज के द्वारा लेख या गणित कला का उपयोग कर के जीवन चलाना। ३-कृषि-खेती के द्वारा या पदार्थों के क्रयविक्रय से आजीविका चलाना। देशावकाशिक व्रत की एक व्याख्या ऊपर दी जा चुकी है, परन्तु इस के अन्य व्याख्यान के दो और भी प्रकार मिलते हैं, जो कि निम्नोक्त हैं __(1) जिस प्रकार 14 नियमों के ग्रहण करने से स्वीकृत व्रतों से सम्बन्धित जो मर्यादा रखी गई है, उस में द्रव्य और क्षेत्र से संकोच किया जाता है, इसी प्रकार 5 अणुव्रतों द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [843