________________ गाड़ी में बैठने का उद्देश्य मार्ग में चलने फिरने वाले कीड़े-मकौड़ों को मारना नहीं, होता। फिर भी प्रायः गाड़ी के नीचे कीड़े-मकौड़े मर जाते हैं, इस प्रकार की हिंसा आरम्भी या आरम्भजा हिंसा कहलाती है। इसी भान्ति एक आदमी चींटियों को जान-बूझ कर पत्थर से मारता है, इस प्रकार की हिंसा संकल्पी या संकल्पजा कही जाती है। सारांश यह है कि त्रस जीवों को मारने का उद्देश्य न होने पर भी गृहस्थसम्बन्धी काम-काज करते समय जो अबुद्धिपूर्वक हिंसा होती है वह आरम्भजा और संकल्पपूर्वक अर्थात् इरादे से जो हिंसा की जाए वह संकल्पजा है। इन में पहले प्रकार की अर्थात् आरम्भजा हिंसा का त्याग करना गृहस्थ के लिए अशक्य है। घर का कूड़ा-कचरा निकालने, रोटी बनाने, आटा पीसने, और खेती-बाड़ी करने तथा फलपुष्पादि के तोड़ने में त्रस जीवों की हिंसा असम्भव नहीं है। इसलिए गृहस्थ को संकल्पी हिंसा के त्याग का नियम होता है, अन्य का नहीं। इस के अतिरिक्त अहिंसाणुव्रत की रक्षा के लिए १-बन्ध,२-वध,३-छविच्छेद,४-अतिभार और ५-भक्तपानव्यवच्छेद इन पांच कार्यों के त्याग करने का ध्यान रखना भी अत्यावश्यक है। बन्ध आदि पदों का अर्थ निम्नोक्त है। १-बन्ध-रस्सी आदि से बांधना बन्ध कहलाता है। बन्ध दो प्रकार का होता हैद्विपदबन्ध और चतुष्पदबन्ध / मनुष्य आदि को बांधना द्विपदबन्ध और गाय आदि पशुओं को बांधना चतुष्पदबन्ध कहा जाता है। अथवा-बन्ध अर्थबन्ध और अनर्थबंध, इन विकल्पों से भी दो प्रकार का होता है। किसी अर्थप्रयोजन के लिए बांधना अर्थबन्ध है तथा बिना प्रयोजन के ही किसी को बांधना अनर्थबन्ध कहलाता है। अर्थबन्ध के भी १-सापेक्षबन्ध, और २निरपेक्षबन्ध, ऐसे दो भेद होते हैं। किसी प्राणी को कोमल रस्सी आदि से ऐसा बांधना कि अग्नि लगने आदि का भय होने पर शीघ्र ही सरलता से छोड़ा जा सके, उसे सापेक्षबन्ध कहते हैं। तात्पर्य यह है कि पढ़ाई आदि के लिए आज्ञा न मानने वाले बालकों, चोर आदि अपराधियों को केवल शिक्षा के लिए बांधना तथा पागल को, गाय आदि पशुओं को एवं मनुष्यादि को अग्नि आदि के भय से उन के संरक्षणार्थ बान्धना सापेक्षबंध कहलाता है, जब कि मनुष्य पशु आदि को निर्दयता के साथ बांधना निरपेक्षबंध कहा जाता है। अनर्थबन्ध तथा निरपेक्षबन्ध श्रावकों के लिए त्याज्य एवं हेय होता है। २-वध-कोड़ा आदि से मारना वध कहलाता है। वध के भी बन्ध की भान्ति द्विपदवध-मनुष्य आदि को मारना, तथा चतुष्पदवध-पशुओं को मारना, अथवा-अर्थवधप्रयोजन से मारना और अनर्थवध-बिना प्रयोजन ही मारना, ऐसे दो भेद होते हैं। अनर्थवध . श्रावक के लिए त्याज्य है। अर्थवध के सापेक्षवध और निरपेक्षवध ऐसे दो भेद हैं। अवसर 820 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [द्वितीय श्रुतस्कन्ध