________________ १८-माधुरविधिपरिमाण-आम, जामुन, केला, अनार आदि हरे फल और दाख, .. बादाम, पिश्ता आदि सूखे फलों की मर्यादा करना। १९-जेमनविधिपरिमाण-जेमन शब्द उन पदार्थों का बोधक है जो भोजन के रूप में क्षुधा के निवारण के लिए खाए जाते हैं, जैसे-रोटी, पूरी आदि। अथवा बड़ा, पकौड़ी आदि पदार्थ जेमन शब्द से संगृहीत होते हैं, इन सब की मर्यादा करना। २०-पानीयविधिपरिमाण-शीतोदक, उष्णोदक, गन्धोदक, अथवा खारा पानी, मीठा पानी आदि पानी के अनेकों भेद हैं, इन सब की मर्यादा करना। २१-मुखवासविधिपरिमाण-भोजनादि के पश्चात् स्वाद या मुख को साफ करने के लिए प्रयुक्त किए जाने वाले पान, सुपारी, इलायची, चूर्ण आदि पदार्थों की मर्यादा करना। २२-वाहनविधिपरिमाण-वाहन अर्थात्-१-चलने वाले-घोड़ा, ऊँट, हाथी आदि तथा २-फिरने वाले गाड़ी, मोटर, ट्राम, साइकल आदि, इन सब वाहनों की मर्यादा करना। २३-उपानविधिपरिमाण-पैरों की रक्षा के लिए पैरों में पहने जाने वाले जूता, खड़ाऊं आदि पदार्थों का परिमाण करना। २४-शयनविधिपरिमाण-शयन शब्द से उन वस्तुओं का ग्रहण होता है, जो सोने, बैठने के काम आती हैं, जैसे-पलंग, खाट, पाट, आसन, बिछौना, मेज, कुर्सी आदि इन सब की मर्यादा करना। २५-सचित्तविधिपरिमाण-आम आदि सचित्त पदार्थों की मर्यादा करना। तात्पर्य यह है कि पदार्थ दो तरह के होते हैं। एक सचित्त-जीवसहित और दूसरे अचित्त-जीवरहित। सचित्त और अचित्त दोनों ही अनेकानेक पदार्थ हैं। श्रावक यदि सचित्त का त्याग नहीं कर सकता तो उस को सचित्त पदार्थों की मर्यादा अवश्य कर लेनी चाहिए। , २६-द्रव्यविधिपरिमाण-खाने के काम में आने वाले सचित्त या अचित्त द्रव्यों की मर्यादा करना। तात्पर्य यह है कि ऊपर के बोलों में जिन पदार्थों की मर्यादा की गई है, उन पदार्थों को द्रव्यरूप में संग्रह करके उन की मर्यादा करना। जैसे-मैं एक समय में, एक दिन में या आयु भर में इतने द्रव्यों से अधिक का उपभोग नहीं करूंगा। जो वस्तु स्वाद की भिन्नता के लिए अलग मुंह में डाली जाएगी, अथवा-एक ही वस्तु स्वाद की भिन्नता के लिए दूसरी वस्तु के संयोग के साथ मुंह में डाली जाएगी, उस में जितनी वस्तुएं मिली हुई हैं, वे उतने द्रव्य कहे जाएंगे। उपभोग्य और परिभोग्य पदार्थों की उपलब्धि के लिए धन की आवश्यकता होती है। . धन के लिए गृहस्थ को कोई न कोई व्यवसाय चलाना ही होता है। अर्थात् कोई धन्धा-रोजगार 834 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [द्वितीय श्रुतस्कन्ध