________________ अक्षम्य अपराध किया था। सीता लौटाने के लिए उसे समझाया गया परन्तु जब वह नहीं माना तो उस की अन्यायपूर्ण प्रवृत्तियों को ठीक करने के लिए तथा सतियों के सतीत्व की रक्षा के लिए राम जैसे अहिंसक ने अपने को युद्ध के लिए सन्नद्ध करने में जरा संकोच नहीं किया। वास्तव में न्याय की रक्षा वीर ही कर सकता है, कायर के बस का वह काम नहीं होता। इस के अतिरिक्त अहिंसा के अग्रगण्य सन्देशवाहक भगवान् महावीर स्वामी तथा भारत के अन्य महामहिम महापुरुषों का अपना साधक जीवन भी-अहिंसा वीरों का धर्म हैइस तथ्य को प्रमाणित कर रहा है। जिन जंगलों को शेर अपनी भीषण मर्मभेदी गर्जनाओं से व्याप्त कर रहे हों, जहां हाथी चिंघाड़े मार रहे हों, इसी भान्ति बाघ आदि अन्य हिंसक पशुओं का जहां साम्राज्य हो, उन जंगलों में एक कायर व्यक्ति अकेला और खाली हाथ ठहर सकता है ? उत्तर होगा, कभी नहीं। परन्तु अहिंसा की सजीव प्रतिमाएं भगवान् महावीर आदि महापुरुष इन सब परिस्थितियों में निर्भय, प्रसन्न तथा शान्त रहते थे। अधिक क्या कहूं, आज का वीर कहा जाने वाला मानव जिन देवताओं के मात्र कथानक सुन कर कंपित हो उठता है, रात को सुख से सो भी नहीं सकता, उन्हीं देवताओं के द्वारा पहुंचाए गए भीषणातिभीषण, असह्य दुःख अहिंसा के अग्रदूतों ने हंस-हंस कर झेले हैं। सारांश यह है कि अहिंसा वीरों का धर्म है, उस में कायरता और दुर्बलता को कोई स्थान नहीं है। एक हिंसक से अहिंसक बनने की आशा तो की जा सकती है परन्तु कायर कभी भी अहिंसक नहीं बन सकता। २-सत्याणुव्रत-इसे स्थूलमृषावादविरमणव्रत भी कहा जाता है। मृषावाद झूठ को कहते हैं, वह सूक्ष्म और स्थूल इन भेदों से दो प्रकार का होता है। मित्र आदि के साथ मनोरंजन के लिए असत्य बोलना, अथवा कोई व्यक्ति बैठा-बैठा ऊंघने लग गया, निकटवर्ती कोई मनुष्य उसे सावधान करता हुआ बोल उठा-अरे ! सोते क्यों हो? इसके उत्तर में वह कहता है, नहीं भाई ! तुम्हारे देखने में अन्तर है, मैं तो जाग रहा हूँ... इत्यादि वाणीविलास सूक्ष्म मृषावाद के अन्तर्गत होता है। स्थूल मृषावाद पांच प्रकार का होता है जो कि निम्नोक्त है . १-कन्यासम्बन्धी-अर्थात् कुल, शील, रूप आदि से युक्त, सर्वांगसम्पूर्ण सुन्दरी, निर्दोष कन्या को कुलादि से हीन बताना तथा कुलादि से हीन कन्या को कुलादि से युक्त बताना कन्यालीक है। २-भूमिसम्बन्धी-अर्थात् उपजाऊ भूमि को अनुपजाऊ कहना तथा अनुपजाऊ को उपजाऊ कहना, कम मूल्य वाली को बहु मूल्य वाली और बहु मूल्य वाली को कम मूल्य वाली कहना भूमि-अलीक है। ३-गोसम्बन्धी-अर्थात् गाय, भैंस, घोड़ा आदि चौपायों में जो प्रशस्त हों उन्हें द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [823