________________ वृत्तान्त को जानने के जो संकल्प उत्पन्न हुए थे, उन की पूर्ति हो जाने पर वे बड़े गद्गद् हुए और फिर उन्होंने भगवान् से उस के आगामी भवों के सम्बन्ध में पूछना आरम्भ किया। वे बोले-"भदन्त ! अंजूश्री यहां से मर कर कहाँ जाएगी? और कहां उत्पन्न होगी ? तात्पर्य यह है कि अञ्जूश्री इसी भान्ति संसार में घटीयन्त्र की तरह जन्म-मरण के चक्र' में पड़ी रहेगी या इस का कहीं उद्धार भी होगा? इस के उत्तर में भगवान् ने जो कुछ फरमाया, अब सूत्रकार उस का उल्लेख करते हैं . मूल-गोतमा ! अंजू णं देवी नउई वासाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयत्ताए उववजिहिइ। एवं संसारो जहा पढमो तहा णेयव्वं जाव वणस्सति / सा णं ततो अणंतरं उव्वट्टित्ता सव्वओभद्दे णगरे मयूरत्ताए पच्चायाहिति।सेणंतत्थ साउणिएहिं वधिते समाणे तत्थेव सव्वओभद्दे णगरे सेट्टिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिति। से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तहारूवाणं थेराणं अंतिए केवलं बोहिं बुझिहिति।पवजा / सोहम्मे / ततो देवलोगाओ आउक्खएणं कहिंगच्छिहिति ? कहिं उववजिहिति? गोतमा ! महाविदेहे जहा पढमे जाव सिज्झिहिति जाव अंतं काहिति।एवं खलु जम्बू ! समणेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं दसमस्स अज्झयणस्स अयमद्वे पण्णत्ते। सेवं भंते ! सेवं भंते ! - दुहविवागेसु दससु अज्झयणेसु पढमो सुयक्खंधो समत्तो॥ छाया-गौतम ! अजूदेवी नवतिं वर्षाणि परमायुः पालयित्वा कालमासे कालं कृत्वा अस्यां रत्नप्रभायां पृथिव्यां नैरयिकतयोपपत्स्यते, एवं संसारो यथा प्रथमः तथा ज्ञातव्यो यावद् वनस्पति ।सा ततोऽनन्तरमुढ्त्य सर्वतोभद्रे नगरे मयूरतया प्रत्यायास्यति। स तत्र शाकुनिकैर्हतः सन् तत्रैव सर्वतोभद्रे नगरे श्रेष्ठिकुले पुत्रतया प्रत्यायास्यति।स तत्र उन्मुक्तबालभावः तथारूपाणां स्थविराणामन्तिके केवलं बोधिं भोत्स्यते प्रव्रज्या / सौधर्मे / ततो देवलोकाद् आयुःक्षयेण कुत्र गमिष्यति ? कुत्रोपपत्स्यते? गौतम ! 1. अहो ! संसारकूपेऽस्मिन् जीवाः कुर्वन्ति कर्मभिः / __ अरघट्टघटीन्यायेन एहिरेयाहिरां क्रियाम् // 1 // अर्थात् आश्चर्य है कि इस संसाररूप कूप में जीव (प्राणी) कर्मों के द्वारा अरघट्टघटी-न्याय के अनुसार गमनागमन की क्रिया करते रहते हैं। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / दशम अध्याय [767