________________ थे। अपने-अपने संशयों' का भगवान् से सन्तोषजनक उत्तर पाकर सभी उन के शिष्य हो गये .. थे, तथा भगवान् के चरणों में ज्ञानाराधन; दर्शनाराधन तथा चारित्राराधन की उत्कर्षता को प्राप्त कर उन्होंने गणधर पद को उपलब्ध किया था। प्रस्तुत में जो श्री सुधर्मा स्वामी का वर्णन किया गया है, ये भगवान् महावीर स्वामी के ही पूर्वोक्त पांचवें गणधर हैं / आज का जैनेन्द्र प्रवचन इन्हीं की वाचना कहलाता है। यही आर्य जम्बू स्वामी के परमपूज्य गुरुदेव हैं। इन्हीं के श्रीचरणों में रहकर श्री जम्बूस्वामी अपनी ज्ञान-पिपासा को जैनेन्द्र प्रवचन के जल से शान्त करते रहते हैं। श्री जम्बूस्वामी का जीवनपरिचय पीछे दिया जा चुका है, पाठक वहीं से देख सकते हैं। विपाकश्रुत के दुःख-विपाक और सुखविपाक ऐसे दो श्रुतस्कन्ध हैं। दुःखविपाक आदि पदों का अर्थ भी प्रथम श्रुतस्कंध के प्रथम अध्याय में लिख दिया गया है। दुख-विपाक के अनन्तर सुखविपाक का स्थान है। इस में सुबाहुकुमार आदि दश अध्ययन हैं। प्रस्तुत में - सुबाहु कुमार कौन था, उसने कहां जन्म लिया था, वह किस नगर में रहता था, उस के माता पिता का क्या नाम था, उसने किस तरह जीवन का निर्माण एवं कल्याण किया, मानव से महामानव वह कैसे बना, इत्यादि प्रश्न श्री जम्बूस्वामी की ओर से श्री सुधर्मा स्वामी के चरणों में रखे गये हैं, उन का उत्तर ही प्रस्तुत अध्ययन का प्रतिपाद्य विषय है। -जम्बू जाव पंजुवासइ-यहां पठित जाव-यावत् पद से-णामं अणगारे कासवगोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वजरिसहनारायसंघयणे कणगपुलगणिघसपम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेउलेसे चोद्दसपुव्वी चउणाणोवगए सव्वक्खरसन्निवाई अज्जसुहम्मस्स थेरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं अज्ज जम्बू णामं अणगारे जायसड्ढे जायसंसए जायकोउहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोउहल्ले, उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोउहल्ले, समुप्पन्नसड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्नकोउहल्ले उठाए उठेइ उठाए उद्वेत्ता जेणामेव अजसुहम्मे थेरे तेणामेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता अजसुहम्मे थेरे तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ करित्ता वंदइ नमसइ वन्दित्ता नमंसित्ता अज्जसुहम्मस्स थेरस्स नच्चासन्ने नाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे पंजलिउडे विणएणं-इन पदों का ग्रहण करना चाहिए। इन पदों का अर्थ निम्नोक्त है 1. संशय तथा उनके उत्तरों का विवरण श्री अगरचन्द भैरोंदान सेठिया बीकानेर द्वारा प्रकाशित 'जैनसिद्धान्त बोलसंग्रह' के चतुर्थ भाग में देखा जा सकता है। द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [791