________________ ___ आर्य जम्बू अनगार आर्य सुधर्मा स्वामी के पास संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विहरण कर रहे थे, जो कि काश्यप गोत्र वाले हैं, जिन का शरीर सात हाथ प्रमाण का है, जो पालथी मार कर बैठने पर शरीर की ऊँचाई और चौड़ाई बराबर हो ऐसे संस्थान वाले हैं, जिन को वज्रर्षभनाराच संहनन है, जो सोने की रेखा के समान और पद्मपराग (कमलरज) के समान वर्ण वाले हैं, जो उग्र तपस्वी-साधारण मनुष्य की कल्पना से अतीत को उग्र कहते हैं, ऐसे उग्र तप के करने वाले, दीप्ततपस्वी-कर्मरूपी गहन वन को भस्म करने में समर्थ तप के करने वाले, तप्ततपस्वी-कर्मसंताप के विनाशक तप के करने वाले और महातपस्वी- . स्वर्गादि की प्राप्ति की इच्छा बिना तप करने वाले हैं, जो उदार-प्रधान हैं, जो आत्मशत्रुओं के विनष्ट करने में निर्भीक हैं, जो दूसरों के द्वारा दुष्प्राप्य गुणों को धारण करने वाले हैं, जो घोरविशिष्ट तपस्वी हैं, जो दारुण-भीषण ब्रह्मचर्य व्रत के पालक हैं, जो शरीर पर ममत्व नहीं रख रहे हैं, जो तेजोलेश्या-विशिष्ट तपोजन्य लब्धिविशेष को संक्षिप्त किये हुए हैं, जो 14 पूर्वो. . के ज्ञाता हैं, जो मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनःपर्यवज्ञान, इन चारों ज्ञानों के धारक हैं, जिन को समस्त अक्षरसंयोग का ज्ञान है, जिन्होंने उत्कुटुक नामक आसन लगा रखा है, जो अधोमुख हैं, जो धर्म तथा शुक्ल ध्यानरूप कोष्ठक में प्रवेश किए हुए हैं अर्थात् जिस प्रकार कोष्ठक में धान्य सुरक्षित रहता है उसी प्रकार ध्यानरूप कोष्ठक में प्रविष्ट हुए आत्म वृत्तियों को सुरक्षित रख रहे हैं। तदनन्तर आर्य जम्बू स्वामी के हृदय में विपाकश्रुत के द्वितीय श्रुतस्कन्धीय सुखविपाक में वर्णित तत्त्वों के जानने की इच्छा उत्पन्न हुई और साथ में यह संशय भी उत्पन्न हुआ कि दुःखविपाक में जिस तरह मृगापुत्र आदि का विषादान्त जीवन वर्णित किया गया है, क्या उसी तरह ही सुखविपाक में किन्हीं प्रसादान्त जीवनों का उपन्यास किया है, या उस में किसी भिन्न पद्धति का आश्रयण किया गया है, तथा उन्हें यह उत्सुकता भी उत्पन्न हुई कि जब विपाकसूत्रीय दुःखविपाक में मृगापुत्रादि का दुःखमूलक जीवनवृत्तान्त प्रस्तावित हो चुका है और उसी से सुखमूलक जीवनों की कल्पना भी की जा सकती है, तो फिर देखें भगवान् सुखविपाक में सुखमूलक जीवनों का कैसे वर्णन करते हैं। 1. 14 पूर्वो के नाम तथा उन का भावार्थ प्रथम श्रुतस्कंध के प्रथमाध्याय में लिखा जा चुका है। 2. प्रस्तुत में सुखविपाक के सम्बन्ध में श्री जम्बू स्वामी को क्या संशय उत्पन्न हुआ था या उस का क्या स्वरूप था, इस के सम्बन्ध में कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिल रहा है। इस सम्बन्ध में टीकाकार महानुभाव भी सर्वथा मौन हैं। तात्पर्य यह है कि जिस तरह भगवती सूत्र में टीकाकार ने भगवान् गौतम के संशय का स्वरूप वर्णित किया है, उसी भांति प्रस्तुत में कोई वर्णन नहीं पाया जाता, तथापि ज्ञाताधर्मकथाङ्ग सूत्र के प्रथम अध्ययन में / प्रतिपादित संशयस्वरूप की भांति प्रस्तुत में कल्पना की गई है। 792 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [द्वितीय श्रुतस्कन्ध