________________ तोरणों-घर या नगर के बाहर फाटकों और चौड़ी सड़कों से वह नगर युक्त था। उस नगर का अर्गल-वह लकड़ी जिससे किवाड़ बन्द करके पीछे से आड़ी लगा देते हैं (अरगल), इन्द्रकील (नगर के दरवाजों का एक अवयव जिस के आधार से दरवाजे के दोनों किवाड़ बन्द रह सकें) दृढ़ था और निपुण शिल्पियों द्वारा उन का निर्माण किया गया था, वहां बहुत से शिल्पी निवास किया करते थे, जिन से वहां के लोगों को प्रयोजनसिद्धि हो जाती थी, इसीलिए वह नगर लोगों के लिए सुखप्रद था। शृङ्गाटकों-त्रिकोण मार्गों, त्रिकों-जहां तीन रास्ते मिलते हों ऐसे स्थानों, चतुष्कों-चतुष्पथों, चत्वरों-जहां चार से भी अधिक रास्ते मिलते हों ऐसे स्थानों और नाना प्रकार के बर्तन आदि के बाजारों से वह नगर सुशोभित था। वह अतिरमणीय था। वहां का राजा इतना प्रभावशाली था कि उस ने अन्य राजाओं के तेज को फीका कर दिया था। अनेक अच्छे-अच्छे घोड़ों, मस्त हाथियों, रथों, गुमटी वाली पालकियों, पुरुष की लम्बाई जितनी लम्बाई वाली पालकियों, गाड़ियों और युग्यों अर्थात् गोल्लदेश में एक प्रकार की पालकियां जिन के चारों ओर फिरती चौरस दो हाथ प्रमाण की वेदिका (कठहरा) होती है, से वह नगर युक्त था। उस नगर के जलाशय नवीन कमल और कमलिनियों से सुशोभित थे। वह नगर श्वेत और उत्तम महलों से युक्त था। वह नगर इतना स्वच्छ था कि अनिमेष-बिना झपके दृष्टि से देखने को दर्शकों का मन चाहता था। वह चित्त को प्रसन्न करने वाला था, उसे देखते-देखते आँखें नहीं थकती थी, उसे एक बार देख लेने पर भी पुन: देखने की लालसा बनी रहती थी, उसे जब देखा जाए तब ही वहां नवीनता ही प्रतिभासित होती थी, ऐसा वह सुन्दर नगर था। -सव्वोउय०-यहां का बिन्दु-सव्वोउयपुप्फफलसमिद्धे रम्मे नंदणवणप्पगासे पासाइए दंसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे-इस पाठ का परिचायक है। सब ऋतुओं में होने वाले पुष्पों और फलों से परिपूर्ण एवं समृद्ध सर्वर्तुकपुष्पफलसमृद्ध कहलाता है। रम्य रमणीय को कहते हैं। मेरुपर्वत पर स्थित नन्दनवन की तरह शोभा को प्राप्त करने वाला-इस अर्थ का परिचायक नन्दनवनप्रकाश शब्द है। प्रासादीय शब्द-मन को हर्षित करने वाला इस अर्थ का, दर्शनीय शब्द-जिसे बार-बार देख लेने पर भी पुनः देखने की लालसा बनी रहे-इस अर्थ का एवं प्रतिरूप शब्द-जिसे जब भी देखा जाए तब ही वहां नवीनता ही प्रतीत हो, इस अर्थ का बोध कराता है। ___-दिव्वे-यहां का बिन्दु-सच्चे सच्चोवाए सन्निहियपाडिहेरे जागसहस्सभागपडिच्छए बहुजणो अच्चेइ कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खायतणं-इन पदों का संसूचक है। इन पदों का भावार्थ निम्नोक्त है द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय - [803