________________ जागती हैं। सो महारानी धारिणी देवी भी इन्हीं चौदह स्वप्नों में से एक को देख कर जागी हैं, इसलिए इन के गर्भ से पुत्ररत्न का जन्म होगा। वह बालक अपने शिशुभाव को त्याग कर युवावस्था-सम्पन्न होने पर सर्वविद्यासम्पन्न और सर्वकलाओं का ज्ञाता होगा। युवावस्था में प्रवेश करने पर या तो वह बालक दानशील और राज्य को बढ़ाने वाला होगा या आत्मकल्याण करने वाला परमतपस्वी और अखण्ड ब्रह्मचारी मुनि होगा। तदनन्तर महाराज श्रेणिक ने स्वप्रशास्त्रियों को बहुमूल्य वस्त्राभूषणादि से सम्मानित कर विदा किया। स्वप्रशास्त्री भी महाराज श्रेणिक को प्रणाम करके अपने-अपने स्थान को चले गए। - गर्भ के तीसरे मास में महारानी को अकालमेघ का दोहद उत्पन्न हुआ, जिस के अपूर्ण रहने से महारानी हतोत्साह हुई आर्तध्यान में ही रहने लगी। महाराज श्रेणिक को जब इस वृत्तान्त का पता चला, तब उन्होंने उस को पूर्ण कर देने का आश्वासन देकर शान्त किया। अन्त में अभयकुमार के प्रयास से देवता के आराधन से उसे पूर्ण कर दिया गया। तदनन्तर समय आने पर धारिणी ने एक सर्वाङ्गसम्पूर्ण पुत्ररत्न को जन्म दिया तथा उस का बड़े समारोह के साथ अकालमेघदोहद के कारण "-मेघकुमार-" ऐसा गुणनिष्पन्न नाम रक्खा गया। पुत्ररत्न के हर्ष में महाराज श्रेणिक और महारानी धारिणी ने अपने वैभव के अनुसार गरीबों, अनाथों को जी खोल कर दान दिया। घर-घर में मंगलाचार किया गया। मेघकुमार का पालन-पोषण उसी प्रकार हुआ जिस प्रकार राजा, महाराजाओं के बालकों का हुआ करता है। पाँचों धायमाताओं की देखरेख में द्वितीया के चन्द्र की भान्ति सम्वर्द्धन को प्राप्त होता हुआ, योग्य शिक्षकों की दृष्टि तले 72 कलाओं की शिक्षा प्राप्त करता हुआ, विद्या और विनयसम्पत्ति प्राप्त करने के साथ ही वह युवावस्था को प्राप्त हुआ। यह है मेघकुमार का प्रकृतोपयोगी संक्षिप्त जीवनवृत्तान्त / अधिक के जिज्ञासु श्री ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र के प्रथम अध्ययन का अवलोकन कर सकते हैं। . 'सुबाहुकुमार और मेघकुमार के गर्भ में आने पर माता को आए हुए स्वप्नों में इतना ही अन्तर है कि महाराज श्रेणिक की अर्धांगिनी ने स्वप्न में हस्ती को देखा और अदीनशत्रु की 1. गर्भ के तीसरे महीने गर्भस्थ जीव के भाग्यानुसार जो माता को अमुक प्रकार का मनोरथ उत्पन्न होता है, उस की दोहद संज्ञा है। तदनुसार धारिणी को उस समय यह इच्छा हुई कि मेघों से आच्छादित आकाश को देखू। परन्तु वह समय मेघों के आगमन का नहीं था, इसलिए मेघाच्छन्न आकाश को देखना बहुत कठिन था। ऐसी दशा में उक्त दोहद की पूर्ति कैसे हो? तब ज्ञात होने पर महामंत्री अभयकुमार ने देवता के आराधन द्वारा इस दोहद को पूर्ण किया अर्थात् दैवी शक्ति के द्वारा मेघों से आकाश को आच्छादित कर धारिणी देवी को दिखलाया और उस के दोहद को सफल किया ताकि गर्भ में कोई क्षति न पहुंचे। 2. 72 कलाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन प्रथम श्रुतस्कंध के प्रथम अध्याय में किया जा चुका है। द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [807