________________ अपनी भावी पुत्रवधू देवदत्ता के मोहक रूपलावण्य का ध्यान करते हुए पुलकित हो उठे। तदनन्तर वे अपने यहां विवाह की तैयारी का आयोजन करने में व्यस्त हो गये। .. इधर सेठ दत्त को भी हर्षातिरेक से निद्रा नहीं आती, जब से उसकी पुत्री कुमारी देवदत्ता का सम्बन्ध महाराज वैश्रमणदत्त के राजकुमार पुष्यनन्दी से होना निश्चित हुआ, तब से वे फूले नहीं समाते। मेरी पुत्री देवदत्ता सेठानी न बन कर रानी बनेगी, यह कितने गौरव की बात है, उसे युवराज पुष्यनन्दी जैसा वर मिले, निस्सन्देह यह उसका अहोभाग्य है। उस का इस से अधिक सद्भाग्य क्या हो सकता है कि उसे महाराज वैश्रमण के सुन्दर और सर्वगुण सम्पन्न राजकुमार जैसे सुयोग्य वर की प्राप्ति का अवसर मिला ! अस्तु, अब जहां तक बने इस का जल्दी ही विवाह कर देना चाहिए, कारण कि इस सम्बन्ध में कोई दग्धहृदय बाधा न डाल दे तथा अपनी लड़की देवदत्ता भी अब विवाह योग्य हो गई है और विवाहयोग्य होने पर लड़की को घर में रखना भी कोई बुद्धिमता नहीं है, तथा ऐसी अवस्था में उस का सुसराल में अपने पति के पास रहना ही श्रेयस्कर है, इत्यादि सोच विचार करने के अनन्तर अपनी भार्या कृष्णश्री की अनुमति ले कर शुभ तिथि, करण, दिवस, नक्षत्र और शुभ मुहूर्त में देवदत्ता के विवाह का कार्य आरम्भ कर दिया। सब से प्रथम उसने नाना प्रकार की भोज्य तथा खाद्य सामग्री एकत्रित कराई, तथा अपने मित्रों, ज्ञातिजनों, निजकजनों, स्वजनों, सम्बन्धिजनों और परिजनों को आमंत्रित किया। उन के आने पर उन सब का उचित स्वागत किया और विविध प्रकार से तैयार किए गए भोज्य पदार्थों को प्रस्तुत करके उन के साथ सहभोज में सम्मिलित हुआ अर्थात् अपने सभी मित्र आदि के साथ बैठ कर प्रीतिभोजन किया। तदनन्तर सब के उचित स्थान पर एकत्रित हो जाने पर विपुल वस्त्र, पुष्प और गंध तथा माला अलंकारादि से उन सब का यथोचित सत्कार किया। इस प्रकार विवाह के पूर्व होने वाला सहभोजन या प्रीतिभोजन आदि कार्य सम्पूर्ण हुआ। . तदनन्तर कुमारी देवदत्ता को स्नान करा के यावत् वस्त्रभूषणादि से अलंकृत करके हजार आदमियों से उठाई जाने वाली एक सुन्दर पालकी में बिठा कर अपने अनेक मित्रों, ज्ञातिजनों, निजकजनों, स्वजनों, सम्बन्धिजनों एवं परिजनों को साथ ले कर बड़े समारोह के साथ दत्त सेठ ने महाराज वैश्रमणदत्त के राजमहल की ओर प्रस्थान किया और वहां जाकर 1. चन्द्रकला से युक्त काल अथवा चान्द्र दिवस तिथि कहलाता है। ज्योतिषशास्त्र में प्रसिद्ध, बव बालव आदि ग्यारह की करण संज्ञा है। ज्योतिषशास्त्र में वर्णित दोषों से रहित दिन दिवस शब्द से ग्राह्य है। ज्योतिषशास्त्र विहित-अश्विनी, भरणी आदि 28 नक्षत्रों का नक्षत्र पद से ग्रहण होता है। दो घड़ी (48 मिनट) समय अथवा 77 लवों या 37737 श्वासोच्छ्वासपरिमित काल मुहूर्त कहा जाता है। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [725