________________ लालसा को इतना अधिक बढ़ाए हुए है कि महाराज पुष्यनन्दी का क्षणिक वियोग भी उसे, असह्य हो उठता है। वह नहीं चाहती कि रोहीतकनरेश उस से थोड़े समय के लिए भी पृथक् हों। उसकी इसी तीव्र वासना ने ही उस से मातृघात जैसे बर्बर एवं जघन्य अनर्थ कराने के लिए सन्नद्ध किया, जिस का स्मरण करते ही मानवता कांप उठती है। पृथिवी तथा आकाश रो उठते हैं। पति की पूज्य माता को इसलिए प्राणरहित कर देना कि उसकी सेवा में लगे रहने से पतिसहवास से प्राप्त होने वाले आमोद-प्रमोद में विघ्न पड़ता है, कितना नृशंसतापूर्ण घृणित विचार है ? वास्तव में यह सब कुछ मानवता का पतन करने वाली आत्मघातिनी कामवासना का ही दूषित परिणाम है। जो मानव इस पिशाचिनी कामवासना के चंगुल में नहीं फंसे या नहीं फंसते, वे ही वास्तव में मानव कहलाने के योग्य हैं, बाकी के तो सब प्रायः पाशविक जीवन बिताने वाले केवल नाम के ही मानव हैं। विषयवासना की भूखी, विवेकशून्य देवदत्ता ने अपने प्राणवल्लभ की चाह में, जिस का. कि विषय पूर्ति के अतिरिक्त कोई भी उद्देश्य नहीं था, उस की तीर्थसमान पूज्य माता का जिस विधि और जिस निर्दयता से प्राणान्त किया, उसका वर्णन मूलार्थ में आ चुका है। इस पर से इतना समझने में कुछ भी कठिनता नहीं रहती कि ऐहिक स्वार्थ में अंधा हुआ मानव भयानक से भयानक अनर्थ करने में भी संकोच नहीं करता। -विरहियसयणिजंसि-इस पद की व्याख्या अभयदेवसूरि के शब्दों में-विरहिते विजनस्थाने शयनीयं विरहितशयनीयं तत्र-इस प्रकार है। अर्थात् सोने की वह शय्या, जहां पर दूसरा कोई भी मनुष्य नहीं है-उस पर। -सुहप्पसुत्ता-का अर्थ आजकल के मुहावरे के अनुसार-आराम की नींद सोना, होता है। वास्तव में इस प्रकार का प्रयोग निश्चिन्त अवस्था में आई हुई निद्रा के लिए होता है। -फुल्लकिंसुयसमाणं-का अर्थ है -केसू के फूल के समान लाल। इस कथन से तपे हुए लोहदण्ड के अग्निस्वरूप में परिवर्तित हुए रूप का दिग्दर्शन कराना ही सूत्रकार को अभिमत है। -अज्झस्थिते ५-यहां दिए 5 के अंक से अभिमत पाठ द्वितीय अध्याय में लिखा जा चुका है। तथा-माइभत्ते समाणे जाव विहरति-यहां के जाव-यावत् पद से -कलाकल्लिं जेणेव सिरीदेवी तेणेव-से लेकर-भोगभोगाइं भुंजमाणे-यहां तक के पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। तथा अन्तराणि य ३-यहां दिये गए 3 के अंक से-छिद्दाणि य विरहाणि य-इन पदों का ग्रहण करना चाहिए। अन्तर आदि पदों का अर्थ पदार्थ में लिखा जा चुका है। तथा-रोयमाणीओ ३-यहां दिए गये 3 'के अंक से-कंदमाणीओ विलवमाणीओ-इन पदों का ग्रहण करना चाहिए। हाय मां ! इस प्रकार कहकर रुदन करती हुई, 738 ] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध