________________ जन्मों में मनुष्य जन्म सर्वोत्तम है। जातिशतेन लभते किल मानुषत्वम्। (गरुडपुराण) अर्थात् गर्भ की सैंकड़ों यातनाएं भुगतने के अनन्तर मनुष्य का शरीर प्राप्त होता है। गुह्यं ब्रह्म तदिदं ब्रवीमि, नहि मानुषात् श्रेष्ठतरं हि किंचित्॥ . अर्थात् महाभारत में व्यास जी कहते हैं कि आओ, मैं तुम्हें एक रहस्य की बात बताऊं। यह अच्छी तरह मन में दृढ़ निश्चय कर लो कि संसार में मनुष्य से बढ़ कर और कोई श्रेष्ठ नहीं है। "-द्विभुजः परमेश्वरः-" अर्थात् मनुष्य दो हाथ वाला परमेश्वर है। "स्वर्गी चे अमर इच्छिताती देवा मृत्युलोकी ह्वावा जन्म आम्हां" (सन्त तुकाराम.जी) अर्थात् स्वर्ग के देवता इच्छा करते हैं कि प्रभो! हमें मर्त्य-लोक में जन्म चाहिए अर्थात् हमें मनुष्य बनने की चाह है। नरतन सम नहिं कविनिउ देही।जीव चराचर जाचत जेही। बड़े भाग मानुष तन पावा। सुरदुर्लभ सब ग्रंथन गावा॥ (तुलसीदास) दुर्लभ मानव जन्म है, देह न बारम्बार। तरवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार॥ (कबीर वाणी) जो फरिश्ते करते हैं, कर सकता है इन्सान भी। पर फरिश्तों से न हो जो काम है इन्सान का॥ फरिश्ते से बेहतर है इन्सान बनना, मगर इस में पड़ती है मेहनत ज्यादा। इत्यादि अनेकों प्रवचन उपलब्ध होते हैं, जिन से मानव जीवन की दुर्लभता एवं महानता सुतरां प्रमाणित हो जाती है। इस के अतिरिक्त जैन शास्त्रों में मानव जीवन की दुर्लभता का निरूपण बड़े विलक्षण दश दृष्टान्तों द्वारा किया गया है, जिन का विस्तारभय से प्रस्तुत में उल्लेख नहीं किया जा रहा है। ऊपर के विवेचन में यह स्पष्ट हो जाता है कि मानव का जन्म दुर्लभ है, महान् है। अतः प्रत्येक मानव का कर्तव्य हो जाता है कि इस अनमोल और देवदुर्लभ मनुष्यभव को प्राप्त कर इस से सुगतिमूलक लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए, और आत्मश्रेय साधना चाहिए परन्तु इस के विपरीत जो लोग जीवन को पतन की ओर ले जाने वाले कृत्यों में मग्न रहते हैं तथा सुकृत्यों से दूर भाग कर असदनुष्ठानों में प्रवृत्त रहते हैं, वे दुर्गतियों में अनेकानेक दुःख भोगने. के साथ-साथ जन्म-मरण के प्रवाह में प्रवाहित होते रहते हैं, ऐसे प्राणी अनेकों हैं, उन में से 750 ] श्री विपाक सूत्रम् / दशम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कन्ध