________________ जाएगी? कहिं-कहां पर। उववजिहिति ?-उत्पन्न होगी? - मूलार्थ-भगवन् ! देवदत्ता देवी यहां से कालमास में काल करके कहां जाएगी? कहां पर उत्पन्न होगी? टीका-रोहीतक नगर के राजमार्ग पर शस्त्र-अस्त्रों से सन्नद्ध सैनिक पुरुषों के मध्य स्थित अवकोटकबन्धन से बन्धी हुई तथा कर्ण और नासिका जिसकी काट ली गई थीं, ऐसी शूली पर चढ़ाई जाने वाली एक वध्य नारी के करुणाजनक दृश्य को देखकर भगवान् गौतमस्वामी के हृदय में जो उसके पूर्वजन्मसम्बन्धी वृत्तान्त जानने की इच्छा उत्पन्न हुई, तदनुसार उन्होंने भगवान् महावीर से जो पूछा था उसका उत्तर मिल जाने पर भगवान् गौतम उस स्त्री के आगामी भवों का वृत्तान्त जानने की लालसा से फिर प्रभु वीर से पूछने लगे। वे बोले प्रभो ! यह देवदत्ता नामक स्त्री यहां से मृत्यु को प्राप्त हो कर कहां जाएगी, और कहां उत्पन्न होगी ? तात्पर्य यह है कि यह इसी भान्ति कर्मजन्य सन्ताप से दुःखोपभोग करती रहेगी तथा जन्ममरण के प्रवाह में प्रवाहित होती रहेगी, या इस के दुःखों का कहीं अन्त भी होगा, और कभी संसार सागर से पार भी हो सकेगी? श्री गौतम स्वामी के द्वारा किए गए प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने जो कुछ फरमाया, अब सूत्रकार उस का वर्णन करते हैं_मूल-गोतमा ! असीतिं वासाइं परमाउं पालयित्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उववजिहिति। संसारो जाव वणस्सइ। ततो अणंतरं उव्वट्टित्ता गंगापुरे णगरे हंसत्ताए पच्चायाहिति। से णं तत्थ साउणिएहिं वहिते समाणे तत्थेव गंगापुरे सेट्टि बोहि सोहम्मे महाविदेहे. सिज्झिहिति 5 णिक्खेवो। ॥णवमं अज्झयणं समत्तं॥ छाया-गौतम ! अशीति वर्षाणि परमायुः पालयित्वा कालमासे कालं कृत्वा अस्यां रत्नप्रभायां पृथिव्यामुपपत्स्यते।संसारस्तथैव यावद् वनस्पति / ततोऽनन्तरमुढत्य गंगापुरे नगरे हंसतया प्रत्यायास्यति / स तत्र शाकुनिकैहतस्तत्रैव गंगापुरे श्रेष्ठि॰ बोधि सौधर्मे महाविदेहे० सेत्स्यति 5 निक्षेपः। // नवममध्ययनं समाप्तम्॥ पदार्थ-गोतमा ! हे गौतम ! असीति-अस्सी (80) / वासाइं-वर्षों की। परमाउं-परमायु। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [745