________________ यत्रैव श्रीदेवी तत्रैवोपागच्छन्ति 2 श्रियं देवीं, निष्प्राणां, निश्चेष्टां, जीवविप्रहीणां पश्यन्ति 2, हा हा अहो ! अकार्यमिति कृत्वा रुदत्यः 2 यत्रैव पुष्यनन्दी राजा तत्रैवोपागच्छन्ति 2 पुष्यनंदिराजमेवमवदन्-एवं खलु स्वामिन् ! श्रीदेवी देवदत्तया देव्या अकाले एव जीविताद् व्यपरोपिता। पदार्थ-तते णं-तदनन्तर। तीसे-उस। देवदत्ताए-देवदत्ता। देवीए-देवी के। अन्नया-अन्यदा। कयाइ-कदाचित्। पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि-मध्यरात्रि के समय / कुडुम्बजागरियं-कौटुम्बिक चिन्ता के कारण। जागरमाणीए-जागती हुई के। इमे-यह। एयारूवे-इस प्रकार का। अज्झत्थिते ५-संकल्पविचार 5 / समुप्पजित्था-उत्पन्न हुआ। एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। पूसणंदी-पुष्यनन्दी। रायाराजा। सिरीए देवीए माइभत्ते-श्रीदेवी का, यह पूज्या है, इस बुद्धि से भक्त। समाणे-बना हुआ। जावयावत्। विहरति-विहरण करता है। तं-अतः। एएणं-इस। वक्खवेणं-व्यक्षेप-बाधा से। नो-नहीं। संचाएमि-समर्थ हूँ। अहं-मैं। पूसणंदिणा-पुष्यनन्दी। रण्णा-राजा के। सद्धिं-साथ। उरालाइं-उदारप्रधान। माणुस्सगाई-मनुष्यसम्बन्धी।भोगभोगाई-विषयभोगों का। जमाणी-सेवन करती हुई। विहरित्तएविहरण करने को, अर्थात् ऐसी दशा में मैं महाराज पुष्यनन्दी के साथ पर्याप्तरूप से विषयभोगों का उपभोग नहीं कर सकती। तं-इसलिए। सेयं-योग्य है। खलु-निश्चयार्थक है। ममं-मुझे। सिरि देविंश्रीदेवी को। अग्गिप्पओगेण वा-अग्नि के प्रयोग से, अथवा। सत्थप्पओगेण वा-शस्त्र के प्रयोग से, अथवा। विसप्पओगेण-विष के प्रयोग द्वारा। जीवियाओ-जीवन से। ववरोवित्ता-व्यपरोपित कर, पृथक् करके। पूसणंदिणा-पुष्यनन्दी। रण्णा-राजा के।सद्धिं-साथ।उरालाइं-उदार-प्रधान ।माणुस्सगाईमनुष्यसम्बन्धी। भोगभोगाई-विषयभोगों का। भुंजमाणी-सेवन करते हुए। विहरित्तए-विहरण करना। एवं-इस प्रकार। संपेहेति २-विचार करती है, विचार कर। सिरीए देवीए-श्री देवी के। अन्तराणि य ३-१-अन्तर-जिस समय राजा का आगमन न हो, २-छिद्र-जिस समय राजपरिवार का कोई आदमी न हो, ३-विरह-जिस समय कोई सामान्य मनुष्य भी न हो, ऐसे अवसर की। पडिजागरमाणी २-प्रतीक्षा करती हुई 2 / विहरति-विहरण करने लगी-अवसर की प्रतीक्षा में रहने लगी। तते णं-तदनंतर / सावह। सिरी-श्री। देवी-देवी। अन्नया-अन्यदा। कयाइ-कदाचित्। मजाविया-स्नान कराए हुए। विरहियसयणिजंसि-एकान्त में अपनी शय्या पर / सुहप्पसुत्ता जाया यावि-सुखपूर्वक सोई हुई। होत्थाथी। इमं च णं-और इधर अर्थात् इतने में लब्धावकाश। देवदत्ता-देवदत्ता। देवी-देवी। जेणेव-जहां। सिरीदेवी-श्रीदेवी थी। तेणेव-वहां पर। उवागच्छति २-आती है, आकर। मजावियं-स्नान कराये हुए। विरहियसयणिजंसि-एकान्त में अपनी शय्या पर। सुहप्पसत्तं-सुख से सोई हुई। सिरि देविं-माता श्रीदेवी को। पासति २-देखती है, देखकर। दिसालोयं-दिशा का अवलोकन करती है अर्थात् कोई देखता तो नहीं, यह निश्चय करने के लिए वह चारों ओर देखती है, तदनन्तर / जेणेव-जहां। भत्तघरेभक्तगृह-रसोई थी। तेणेव-वहां पर। उवागच्छइ २-आ जाती है, आकर। लोहदंड-लोहे के दंड को। परामुसति २-ग्रहण करती है, ग्रहण कर। लोहदंडं-लोहदण्ड को। तवावेति २-तपाती है, तपा कर। तत्तं-तपा हुआ। समजोतिभूतं-अग्नि के समान देदीप्यमान। फुल्लकिंसुयसमाणं-विकसित-खिले हुए, 734 ] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध