________________ को प्राप्त हो। करतल-हाथ जोड़। जाव-यावत्। एयमटुं-इस बात को। पडिसुणेति २-स्वीकार कर लेते हैं, स्वीकार कर। पहाया-स्नान कर। जाव-यावत्। सुद्धप्यावेसाइं-शुद्ध तथा राजसभा आदि में प्रवेश करने के योग्य। वत्थाई पवरपरिहिया-प्रधान-उत्तम वस्त्रों को धारण किए हुए। जेणेव-जहां। दत्तस्स-दत्त का। गिहे-घर था। तेणेव-वहां पर। उवागया-आ गये। तते णं-तदनन्तर। से-वह। दत्तेदत्त / सत्थवाहे-सार्थवाह / ते-उन। पुरिसे-पुरुषों को। एज्जमाणे-आते हुओं को। पासति-देखता है। पासित्ता-देख कर / हट्ठतुढे-बड़ा प्रसन्न हुआ और अपने। आसणाओ-आसन से। अब्भुढेति-उठता है, और। सत्तट्ठपयाई-सात आठ पैर-कदम। अब्भुग्गते-आगे जाता है, तथा। आसणेणं-आसन से। उवनिमंतेति-निमंत्रित करता है अर्थात् उन्हें आसन पर बैठने की प्रार्थना करता है। उवनिमंतेत्ता-इस प्रकार निमंत्रित कर, तथा। आसत्थे-आस्वस्थ अर्थात् गतिजन्य श्रम के न रहने से स्वास्थ्य-शान्ति को प्राप्त हुए। वीसत्थे-विस्वस्थ अर्थात् मानसिक क्षोभाभाव के कारण विशेष रूप से स्वास्थ्य को प्राप्त हुए। सुहासणवरगते-सुखपूर्वक उत्तम आसनों पर बैठे हुए। ते-इन। पुरिसे-पुरुषों के प्रति / एवं वयासी-इस प्रकार बोला। देवाणुप्पिया !-हे महानुभावो ! संदिसंतु णं-आप फरमावें। किमागमणपओयणं-आप .. के आगमन का क्या हेतु है, अर्थात् आप कैसे पधारे हैं ? तते णं-तदनन्तर / ते-वे। रायपुरिसा-राजपुरुष। दत्तं सत्थवाह-दत्त सार्थवाह के प्रति / एवं वयासी-इस प्रकार कहने लगे। देवाणुप्पिया!-हे महानुभाव! अम्हे णं-हम। तव-तुम्हारी। धूयं-पुत्री। कण्हसिरिअत्तयं-कृष्णश्री की आत्मजा। देवदत्तं-देवदत्ता। दारियं-बालिका को। पूसणंदिस्स-पुष्यनन्दी। जुवरण्णो-युवराज के लिए। भारियत्ताए-भार्यारूप से। वरेमो-मांगते हैं ? तं-अतः। जति णं-यदि। देवाणुप्पिया-आप महानुभाव। जुत्तं वा-युक्त-हमारी प्रार्थना उचित। पत्तं वा-प्राप्त-अवसर प्राप्त। सलाहणिज्ज-श्लाघनीय तथा। संजोगो वा-वधू-वर का संयोग। सरिसो वा-समान-तुल्य। जाणासि-समझते हो। ता-तो। दिजंउ णं-दे दो। देवदत्ता-देवदत्ता को। जुवरण्णो-युवराज। पूसणंदिस्स-पुष्यनन्दी के लिए। भण-कहो। देवाणुप्पिया !-हे महानुभाव ! आप को। किं-क्या। सुक्कं-शुल्क-उपहार। दलयामो-दिलवायें ? तते णं-तदनन्तर। से-वह / दत्तेदत्त। ते-उन। अब्भिंतरट्ठाणिज्जे-अभ्यन्तरस्थानीय। पुरिसे-पुरुषों के प्रति। एवं वयासी-इस प्रकार बोले। देवाणुप्पिया !-हे महानुभावो ! एतं चेव-यही। ममं-मेरे लिए। सुक्कं-शुल्क है। जंणं-जो कि। वेसमणदत्ते राया-महाराज वैश्रमणदत्त / ममं-मुझे। दारियाणिमित्तेणं-इस दारिका-बालिका के निमित्त से। अणुगिण्हइ-अनुगृहीत कर रहे हैं, इस प्रकार कहने के बाद। ते-उन / ठाणेज्जपुरिसे-स्थानीय पुरुषों का। विउलेणं-विपुल। पुप्फ-पुष्प। वत्थ-वस्त्र / गंध-सुगंधित द्रव्य / मल्लालंकारेणं-माला तथा अलंकार से। सक्कारेति २-सत्कार करता है, सत्कार कर के। पडिविसज्जेति-उन्हें विसर्जित करता है। तते णंतदनन्तर। ते-वे। ठाणेज्जपुरिसा-स्थानीयपुरुष। जेणेव वेसमणे राया-जहां पर महाराज वैश्रमणदत्त थे। तेणेव-वहीं पर। उवागच्छन्ति २-आ गये, आकर। वेसमणस्स-वैश्रमणदत्त / रण्णो-राजा को। एतमटुंइस अर्थ का अर्थात् वहां पर हुई सारी बातचीत का। निवेदंति-निवेदन करते हैं। मूलार्थ-तदनन्तर महाराज वैश्रमणदत्त अश्ववाहनिका से-अश्वक्रीड़ा से वापिस आकर अपने अभ्यन्तरस्थानीय-अन्तरंग पुरुषों को बुलाते हैं, बुलाकर उन को इस प्रकार कहते हैं 716 ] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध