________________ गच्छति उपागत्य सागरदत्तं सार्थवाहमेवमवादीत्-एवं खल्वहं देवानुप्रिय! युष्माभिः सार्द्धं यावत् न प्राप्ता, तदिच्छामि देवानुप्रिय ! युष्माभिरभ्यनुज्ञाता यावदुपयाचितुम्। - ततः स सागरदत्तो गंगादत्तां भार्यामेवमवदत्-ममापि च देवानुप्रिये! एष चैव मनोरथः, कथं त्वं दारकं वा दारिकां वा प्रजनिष्यति / गंगादत्तां भार्यामेत-दर्थमनुजानाति / पदार्थ-तते णं-तदनन्तर। सा-वह। गंगादत्ता-गंगादत्ता। भारिया-भार्या। जायणिहुयाजातनिद्रुता-जिस के बालक जीवित न रहते हों। यावि होत्था-भी थी, उस के। जाता २-उत्पन्न हुए 2 / दारगा-बालक। विणिघायमावजंति-विनाश को प्राप्त हो जाते थे। तते णं-तदनन्तर। तीसे-उस। गंगादत्ताए-गंगादत्ता। सत्थवाहीए-सार्थवाही को, जो कि। पुव्वरत्तावरत्तकुडुंबजागरियाए-मध्यरात्रि के समय कुटुम्बसंबन्धी जागरिका-चिन्तन के कारण। जागरमाणीए-जागती हुई के। अन्नया-अन्यदा। कयाइ-कदाचित्-किसी समय। अयमेयारूवे-यह इस प्रकार का। अन्झथिए ५-आध्यात्मिकसंकल्पविशेष 5 / समुप्पन्ने-उत्पन्न हुआ। एवं-इस प्रकार। खलु-निश्चय ही। अहं-मैं। सागरदत्तेणंसागरदत्त / सत्थवाहेणं-सार्थवाह-मुसाफिर व्यापारियों का मुखिया या संघ का नायक, के। सद्धिं-साथ। उरालाइं-उदार-प्रधान / माणुस्सगाई-मनुष्यसम्बन्धी।भोगभोगाई-कामभोगों का। जमाणी-सेवन करती हुई। विहरामि-विहरण कर रही हूं, परन्तु। अहं-मैंने आज तक एक भी। दारगं वा-बालक अथवा। दारियं वा-बालिका को। णो चेव-नहीं। पयामि-जन्म दिया अर्थात् मैंने ऐसे बालक या बालिका को जन्म नहीं दिया जो कि जीवित रह सका हो।तं-इसलिए / धण्णाओणं-धन्य हैं / ताओ-वे। अम्मयाओमाताएं, तथा। सपुण्णाओ णं-पुण्यशालिनी हैं। ताओ-वे। अम्मयाओ-माताएं। कयत्थाओ णं-कृतार्थ हैं। ताओ-वे।अम्मयाओ-माताएं। कयलक्खणाओणं-कतलक्षणा हैं। ताओ-वे। अम्मयाओ-माताएं। तासिं-उन। अम्मयाणं-माताओं ने ही। सुलद्धे णं-प्राप्त कर लिया है। माणुस्सए-मनुष्यसम्बन्धी। जम्मजीवियफले-जन्म और जीवन का फल। जासिं-जिन के। नियगकुच्छिसंभूयाई-अपनी कुक्षिउदर से उत्पन्न हुई संतानें हैं, जो कि। थणदुद्धलुद्धगाई-स्तनगत दुग्ध में लुब्ध हैं। महुरसमुल्लावगाइंजिन के संभाषण अत्यंत मधुर हैं। मम्मणपयंपियाइं-जिन के प्रजल्पन-वचन मन्मन अर्थात् अव्यक्त अथच स्खलित हैं। थणमूला-स्तन के मूलभाग से। कक्खदेसभागं-कक्ष (कांख) प्रदेश तक। अतिसरमाणगाई-सरक रहीं हैं। मुद्धगाई-जो मुग्ध-नितान्त सरल हैं, और फिर / कोमल-कमलोवमेहिंकमल के समान कोमल-सुकुमार / हत्थेहिं-हाथों से। गेण्हिऊण-ग्रहण कर-पकड़ कर / उच्छंगनिवेसियाईउत्संग में-गोदी में स्थापित की हुईं हैं। पुणो-पुणो-बार बार। सुमहुरे-सुमधुर। मंजुलप्पणितेमञ्जुलप्रभणित-जिन में प्रभणित-भणनारंभ अर्थात् बोलने का प्रारम्भ मंजुल-कोमल है, ऐसे। समुल्लावएसमुल्लापों-वचनों को। दिति-सुनाते हैं, सारांश यह है कि जिन माताओं की ऐसी संताने हैं उन्हीं का जन्म तथा जीवन सफल है, ऐसा मैं। मन्ने-मानती हूं, परन्तु। अहं णं-मैं तो। अधन्ना-अधन्य हूँ। अपुण्णापुण्यहीन हूँ। अकयपुण्णा-अकृतपुण्य हूँ अर्थात्-जिसने पूर्वभव में कोई पुण्य नहीं किया, ऐसी हूँ। एत्तो-इन उक्त चेष्टाओं में से। एक्कतरमवि-एक भी। न पत्ता-प्राप्त न हुई अर्थात् बाल संबन्धी उक्त चेष्टाओं में से मुझे एक के देखने का भी आज तक सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ। तं-इसलिए। खलु-निश्चय प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [583