________________ तब सागरदत्त सार्थवाह इस बात के लिए अर्थात् दोहद की पूर्ति के लिए गंगादत्ता को आज्ञा दे देता है।सागरदत्त सेठ से आज्ञा प्राप्त कर गंगादत्ता पर्याप्त मात्रा में अशनादिक चतुर्विध आहार की तैयारी करवाती है और उपस्कृत आहार एवं 6 प्रकार की सुरा आदि पदार्थ तथा बहुत सी पुष्पादिरूप पूजा सामग्री ले कर मित्र, ज्ञातिजन आदि की तथा और अन्य महिलाओं को साथ लेकर यावत् स्नान एवं अशुभ स्वप्नादि के फल को विनष्ट करने के लिए मस्तक पर तिलक एवं अन्य मांगलिक अनुष्ठान करके उम्बरदत्त यक्ष के मन्दिर में आ जाती है। वहां पूर्व की भान्ति पूजा कर धूप धुखाती है। तदनन्तर पुष्करिणीबावड़ी में आ जाती है। वहां पर साथ में आने वाली मित्र ज्ञाति आदि की महिलाएं गंगादत्ता को सर्व अलंकारों से विभूषित करती हैं, तत्पश्चात् उन मित्रादि की महिलाओं तथा अन्य नगर की महिलाओं के साथ उस विपुल अशनादिक तथा षड्विध सुरा आदि का आस्वादनादि करती हुई गंगादत्ता अपने दोहद की पूर्ति करती है। इस प्रकार दोहद को पूर्ण कर वह वापस अपने घर को आ गई। तदनन्तर सम्पूर्णदोहदा, सम्मानितदोहदा, विनीतदोहदा, व्युच्छिन्नदोहदा, सम्पन्नदोहदा वह गंगादत्ता उस गर्भ को सुखपूर्वक धारण करती हुई सानन्द समय बिताने लगी। टीका-भगवान महावीर स्वामी कहने लगे कि गौतम ! जिस समय गंगादत्ता उक्त प्रकार का संकल्प करती है, उस समय वह धन्वन्तरि वैद्य का जीव नरकसम्बन्धी दुःसह वेदनाओं को भोगकर नरक की आयु को पूर्ण करके वहां से सीधा निकल कर इसी पाटलिपंड नगर में, नगर के प्रतिष्ठित सेठ सागरदत्त की गंगादत्ता भार्या के गर्भ में पुत्ररूप में उत्पन्न हुआ, और वह वहां पुष्ट होने लगा, अथच वृद्धि को प्राप्त करने लगा। . सेठानी गंगादत्ता की कुक्षि में आए हुए धन्वन्तरि वैद्य के जीव को जब तीन मास होने लगे तो उसे जो दोहद उत्पन्न हुआ उस का तथा उसकी पूर्ति का उल्लेख मूलार्थ में कर दिया गया है। जो कि अधिक विवेचन की अपेक्षा नहीं रखता। गर्भिणी स्त्री को गर्भ के अनुरूप जो संकल्पविशेष उत्पन्न होता है, उसे शास्त्रीय परिभाषा में दोहद कहते हैं। "-ताओ अम्मयाओ जाव फले-" यहां पठित जाव-यावत् पद पीछे पढ़े गए "-सपुण्णाओणंताओ अम्मयाओ, कयत्थाओणंताओ अम्मयाओ, कयलक्खणाओ णं ताओ अम्मयाओ तासिं च अम्मयाणं सुलद्धे जम्मजीविय-" इन पदों का परिचायक "-मित्त जाव परिवुडाओ-" यहा पठित जाव-यावत् पद से-णाइ-णियग प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [601