________________ पदार्थ-तते णं-तदनन्तर / से-वह / उंबरदत्ते-उम्बरदत्त / दारए-बालक, यहां से। कालमासेकालमास में। कालं किच्चा-काल करके। कहिं-कहां। गच्छिहिति ?-जाएगा ? कहिं-कहां पर। उववजिहिति ?-उत्पन्न होगा? मूलार्थ-तदनन्तर गौतम स्वामी ने भगवान् महावीर स्वामी से पूछा कि भगवन् ! यह उम्बरदत्त बालक यहां से मृत्यु के समय में काल कर के कहां जाएगा? और कहां पर उत्पन्न होगा? टीका-उम्बरदत्त की वर्तमान दशा का कारण जान लेने के बाद गौतम स्वामी को उस के भावी जन्मों के जानने की उत्कण्ठा हुई, तदनुसार वे भगवान् महावीर से पूछते हैं कि भगवन्! उम्बरदत्त का भविष्य में क्या बनेगा? क्या वह इसी प्रकार दु:खों का अनुभव करता रहेगा अथवा उसके जीवन में कभी सुख का भी संचार होगा? प्रभो! वह यहां से मर कर कहां जाएगा? और कहां उत्पन्न होगा? गौतमस्वामी के इस प्रश्न में मानव जीवन के अनेक रहस्य छुपे हुए हैं, उस की उच्चावच परिस्थितियों का अनुभव प्राप्त हो जाता है, एवं मानव जीवन को सुपथगामी बनाने में प्रेरणा मिलती है। इस के उत्तर में भगवान् ने जो कुछ फरमाया अब सूत्रकार उस का वर्णन करते हैं मूल-गोतमा ! उंबरदत्ते दारए बावत्तरिं वासाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयत्ताए उववज्जिहिति, संसारो तहेव जाव पुढवीए / ततो हत्थिणाउरे णगरे कुक्कुडत्ताए पच्चायाहिति। जायमेत्ते चेव गोछिल्लवहिते तत्थेव हत्थिणाउरे णयरे सेट्टि बोहिं॰ सोहम्मे महाविदेहे सिज्झिहिति 5 / णिक्खेवो। ॥सत्तमं अज्झयणं समत्तं॥ छाया-गौतम ! उम्बरदत्तो दारको द्वासप्ततिं वर्षाणि परमायुः पालयित्वा कालमासे कालं कृत्वा अस्यां रत्नप्रभायां पृथिव्यां नैरयिकतयोपपत्स्यते / संसारस्तथैव यावत् पृथिव्याम् / ततो हस्तिनापुरे नगरे कुर्कुटतया प्रत्यायास्यति। जातमात्र एव गौष्ठिकवधितस्तत्रैव हस्तिनापुरे नगरे श्रेष्ठि० बोधि सौधर्मे महाविदेहे सेत्स्यति 5 / निक्षेपः। // सप्तममध्ययनं समाप्तम्॥ 612 ] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय . . [प्रथम श्रुतस्कंध