________________ ३-णिम्मंसं-निर्मासम्-भोजनादि के अभाव से जो मांस से रहित हो रहा है उसे निर्मांस कहते हैं। ४-अट्ठिचम्मावणद्धं-अस्थिचर्मावनद्धम-अतिकृशत्वादस्थिसंलग्नचर्मकमित्यर्थः-अर्थात् अतिकृश हो जाने के कारण जिसका चर्म-चमड़ा, अस्थियों-हड्डियों से अवनद्ध-चिपट रहा है। तात्पर्य यह है कि मांस और रुधिर की अत्यधिक क्षीणता के कारण जो अस्थिचर्मावशेष दिखाई पड़ रहा है वह अस्थिचर्मावनद्ध कहा जाता है। ५-किडिकिडियाभूयं-किटिकिटिकाभूतम्, अतिकृशत्वादुपवेशनादिक्रियायां किटिकिटिकेति शब्दायमानास्थिकम्-अर्थात् अतिकृश-दुर्बल हो जाने के कारण बैठने और उठने आदि की क्रिया से जिस की अस्थियां किटिकिटिका-ऐसे शब्द करती हैं, इसलिए उसे किटिकिटिकाभूत कहते हैं। ६-णीलसाडगनियत्थं-नीलशाटकनिवसितम्, नीलशाटकं-नीलपरिधानवस्त्रं; निवसितं परिहितं येन यस्य वा स तमिति भावः-अर्थात् जिस ने नीले वर्ण का शाटकधोती या सामान्य पहनने का वस्त्र धारण कर रखा है, वह नीलशाटकनिवसित कहलाता है। इस पद में भगवान् गौतम ने जिस पुरुष को देखा है, उस के परिधानीय वस्त्र का परिचय कराया ७-मच्छकण्टएणं गलए अणुलग्गेणं-मत्स्यकंटकेन गलेऽनुलग्नेन कण्ठप्रविष्टेनेत्यर्थः- अर्थात् ये पद-मत्स्यकण्टक के कण्ठ में प्रविष्ट हो जाने के कारण-इस अर्थ के परिचायक हैं। मत्स्य का कांटा मत्स्यकण्टक कहलाता है। मत्स्य का कांटा बड़ा भीषण होता है, वह यदि कण्ठ में लग जाए तो उस का निकलना अत्यधिक कठिन हो जाता है। ८-कष्ट, करुण, विस्वर तथा पूयकवल, रुधिरकवल और कृमिकवल इन शब्दों का अर्थ पीछे सप्तम अध्याय में लिखा जा चुका है। __ प्रस्तुत में सुक्खं इत्यादि पद द्वितीयान्त हैं अतः अर्थसंकलन में मूलार्थ की भान्ति द्वितीयान्त की भावना कर लेनी चाहिए। ___समोसढे जाव गओ-यहां पठित जाव-यावत् पद तृतीय अध्याय में पढ़े गए-परिसा निग्गया राया निग्गओ, धम्मो कहिओ परिसा राया य पडि०-इन पदों का परिचायक है। ___-जेटे जाव सोरियपुरे-यहां पठित जाव-यावत् पद -अन्तेवासी गोयमे छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बीयाए पोरिसीए झाणं झियाइ, तइयाए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभंते मुहपोत्तियं पडिलेहेति-से लेकर -दिट्ठीए पुरओ रियं सोहेमाणे जेणेव-इन पदों का परिचायक है। -छट्ठक्खमणपारणगंसि- इत्यादि पदों 626 ] श्री विपाक सूत्रम् / अष्टम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध