________________ उन की मनोवृत्ति में क्षोभ उत्पन्न होना अस्वाभाविक नहीं है। आत्मरक्षा की विचारधारा में निमग्न श्यामा को किसी दिन विश्वस्त सूत्र से जब "499 देवियों के साथ महाराज सिंहसेन की ओर से किए गए दुर्व्यवहार को जान कर उन की माताओं के हृदय में विरोध की ज्वाला प्रदीप्त हो उठी है और उन्होंने मिल कर श्यामा का अन्त करने का दृढ़ निश्चय कर लिया है, तदनुसार वे उस अवसर की प्रतीक्षा कर रही हैं" यह वृत्तान्त जानने को मिला तो इस से उस के सन्देह ने निश्चित रूप धारण कर लिया। उसे पूरी तरह विश्वास हो गया कि उसके जीवन का अन्त करने के लिए एक बड़े भारी षड्यन्त्र का आयोजन किया जा रहा है और वह उस की अन्य बहिनों (सपत्नियों) की माताओं की तरफ से हो रहा है। यह देख वह एकदम भयभीत हो उठी और 'कोपभवन में जाकर आर्तध्यान करने लगी। "-मुच्छिते 4-" यहां के अंक से-गिद्धे, गढिते, अज्झोववन्ने-इन अवशिष्ट पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। इन का अर्थ द्वितीय अध्याय में लिखा जा चुका -. है, तथा अन्तर, छिद्र और विरह-इन पदों का अर्थ छठे अध्याय में लिखा जा चुका है। "-सीहसेणे जाव पडिजागरमाणीओ-" यहां पठित जाव-यावत् पद पीछे पढ़े गए-राया सामाए देवीए मुच्छिते-से लेकर-छिद्दाणि य विरहाणि य-यहां तक के पदों का परिचायक है। "-भीया 4-" यहां 4 के अंक से-तत्था, उव्विग्गा, संजातभया-इन पदों का ग्रहण करना चाहिए। इन पदों का अर्थ पदार्थ में दिया जा चुका है। "-ओहय० जाव झियासि-" यहां पठित जाव-यावत् पद से -मणसंकप्पा भूमीगयदिट्ठिया करतलपल्हत्थमुही अट्टल्झाणोवगया-इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। जिस के मानसिक संकल्प विफल हो गए हैं उसे अपहतमनःसंकल्पा, जिसकी दृष्टि भूमि की ओर लग रही है उसे भूमिगतदृष्टिका, जिसका मुख हाथ पर स्थापित हो उसे करतलपर्यस्तमुखी तथा जो आर्तध्यान को प्राप्त हो रही हो उसे आर्तध्यानोपगता कहते हैं। प्रस्तुत सूत्र में महाराज सिंहसेन का महारानी श्यामा के साथ अधिक स्नेह तथा अन्य रानियों के प्रति उपेक्षाभाव और उस कारण से उन की माताओं का श्यामा के प्राण लेने का 1. राजमहलों में एक ऐसा स्थान भी बना हुआ होता है जहां पर महारानियां किसी कारणवशात् उत्पन्न हुए रोष को प्रकट करती हैं और वहां पर प्रवेश मात्र कोप-गुस्से के कारण ही किया जाता है। उस स्थान को कोपग्रह या कोपभवन कहते हैं। अथवा-महारानियां क्रोधयुक्त हो कर अपने केशादि को बिखेर कर जिस किसी भी एकान्त स्थान पर जा बैठती हैं वह कोपगृह कहलाता है। 694 ] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [ प्रथम श्रुतस्कंध