________________ से अधिक कोई भी सांसारिक वस्तु इष्ट नहीं होती। श्यामा देवी के साथ जिन अन्य राजकुमारियों का महाराज सिंहसेन ने पाणिग्रहण किया था, उन का भी पतिप्रेम में भाग था, फिर उस से बिना किसी कारणविशेष के उन्हें वंचित रखना गृहस्थधर्म का नाशक होने के * साथ-साथ अन्यायपूर्ण भी है। (3) पुत्री के प्रति माता का कितना स्नेह होता है, यह किसी स्पष्टीकरण की अपेक्षा नहीं रखता। उस के हृदय में पुत्री को अपने श्वशुरगृह में सर्व प्रकार से सुखी देखने की अहर्निश लालसा बनी रहती है। सब से अधिक इच्छा उस की यह होती है कि उस की पुत्री पतिप्रेम का अधिक से अधिक उपभोग करे, परन्तु यहां तो उस का नाम तक भी नहीं लिया जाता। ऐसी दशा में उन राजकुमारियों की माताएं अपनी पुत्रियों के दुःख में समवेदना प्रकट करती हुई हत्या जैसे महान् अपराध करने पर उतारू हो जाएं तो इस में मातृगत हृदय के लिए आश्चर्यजनक कौन सी बात है.? क्योंकि अपनी पुत्रियों के साथ किए गए दुर्व्यवहार को चुपचाप सहन करने का अंश मातृहृदय में बहुत कम पाया जाता है। यह तो अनुभव सिद्ध है कि जीवन का मोह प्रत्येक व्यक्ति में पाया जाता है। संसार में कोई भी व्यक्ति इस से शून्य नहीं मिलेगा। व्यक्ति चाहे छोटा हो या बड़ा, जीवन सब को प्रिय है और सभी जीवित रहना चाहते हैं। इसीलिए संसार में जिधर देखो उधर जीवनरक्षा के लिए ही हर एक प्राणी उद्योग कर रहा है। जीवन को हानि पहंचाने वाले कारणों का प्रतिरोध तथा जीवन का अपहरण करने वाले शत्रु का प्रतिकार एवं उसे सुरक्षित रखने में निरन्तर सावधान रहने का यत्न यथाशक्ति प्रत्येक प्राणी करता हुआ दृष्टिगोचर होता है। महारानी श्यामा भी अपने जीवन को सुरक्षित रखने के लिए निरन्तर यत्नशील रहती है, उस के हृदय में जीवन के विषय में कुछ शंका हो रही है, इस लिए वह पूरी सावधानी से काम कर रही है। वह जानती है कि मैं ही महाराज सिंहसेन के हृदयसिंहासन पर विराज रही हूँ, और किसी के लिए अणुमात्र भी स्थान नहीं। यही कारण है कि महाराज की ओर से मेरी शेष बहिनों (सपत्नियों-सौकनों) की उपेक्षा ही नहीं किन्तु उनका अपमान एवं निरादर भी किया जाता है। संभव है कि इससे मेरी बहिनों के हृदय में तीव्र आघात पहुंचे और इस के प्रतिकार के निमित्त वे अपनी क्रोधाग्नि को मेरी ही आहुति से शान्त करने की चेष्टा करें। महाराज का उन के प्रति जो असद्भाव है, उस का मुख्य कारण मैं ही एक हूं। अत: मेरे प्रति में समुद्रगत डगमगाती हुई नौका का वर्णन करते हुए "-नव-वहू-उवरयभत्तुया विलवमाणी विव-" ऐसा लिखा है अर्थात् नौका की स्थिति उस नववधू की तरह हो रही है, जो पति के छोड़ देने पर विलाप करती है। भाव यह है कि पति से उपेक्षित नारी का जीवन बड़ा ही दुःखपूर्ण होता है। प्रकृत में ज्ञातासूत्रीय उपमा व्यवहार का रूप धारण कर रही है। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [693