________________ हिंसापरायण जीवन बनाता हुआ मांसाहार और मदिरापान की दुर्गतिप्रद प्रवृत्तियों में अपने को . लगाएगा वह भी श्रीद रसोइए की तरह नरकों में दुःख पाएगा और अधिकाधिक संसार में रुलेगा-यह बतलाकर सूत्रकार ने प्राणिवध, मांसाहार तथा मदिरापान के त्याग का पाठकों को उत्तम उपदेश देने का अनुग्रह किया है। ___मांसाहार के दुष्परिणामों का वर्णन करने वाले शास्त्रों में अनेकानेक प्रवचन उपलब्ध होते हैं। उत्तराध्ययन सूत्र में लिखा है कि श्री मृगापुत्र अपने माता पिता से कहते हैं कि मृगादि जीवों के मांस से अपने शरीर को पुष्ट करने के जघन्य कर्म के फल को भोगने के लिए जब मैं नरकगति को प्राप्त हुआ तो वहां पर यमपुरुषों ने मुझ से कहा कि अय दुष्ट ! तुम्हें मृगादि जीवों के मांस से बहुत प्यार था। इसीलिए तू मांसखण्डों को भून-भून कर खाया करता था और उस में आनन्द मनाता था। अच्छा, अब हम भी तुझ को उसी प्रकार से निष्पन्न मांस खिलाते हैं। ऐसा कह कर उन यमपुरुषों ने मेरे शरीर में से मांस के टुकड़े काट कर और उन / को अग्नि के समान तपाकर मुझे बलात् अनेकों बार खिलाया। मेरे रोने पीटने की ओर उन्होंने तनिक भी ध्यान नहीं दिया। तब मुझे वहां इतना महान दुःख होता था कि जिस को स्मरण करते ही मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। तात्पर्य यह है मांसाहारी व्यक्तियों की नरकों में बड़ी दुर्दशा होती है। जिस प्रकार इस भव में वे दूसरे जीवों के छटपटाने एवं चिल्लाने पर ज़रा भी ध्यान नहीं करते हैं, ठीक उसी प्रकार वैसी ही गति उन की नरक में होती है। वहां पर भी : उन के रुदन-आक्रन्दन एवं विलाप की ओर कोई ध्यान नहीं देता। ,.. ___ आहार की शुद्धि अथवा अशुद्धि भक्ष्य और अभक्ष्य पदार्थों के चुनाव पर निर्भर रहा करती है। जो भक्षण किये गए पदार्थ बुद्धि में सात्विकता पैदा करने वाले होते हैं, वे भक्ष्य और जिन के भक्षण से चित्त में तामसिकता या विकृति पैदा हो वे अभक्ष्य कहलाते हैं। आत्मा पर जिन पदार्थों के भक्षण का अधिक दोषपूर्ण प्रभाव पड़ता है, उन में प्रधानरूप से मांस और मदिरा ये दो पदार्थ माने गए हैं / मांस और मदिरा के प्रयोग से आत्मा के ज्ञान और चारित्र रूप 1. तुहं पियाई मंसाई,खण्डाई सोल्लगाणि य। खाविओमि समंसाइं, अग्गिवण्णाइंणेगसो॥ (उत्तराध्ययन सूत्र अ० 19/70) हिंसे बाले मुसावाई,माइल्ले पिसुणे सढे। भुंजमाणे सुरं मासं, सेयमेयं त्ति मन्नइ॥ (उत्तराध्ययन सूत्र अ०५/९) अर्थात् अकालमृत्यु को प्राप्त करने वाला अज्ञानी जीव हिंसा करता है, झूठ बोलता है, छल कपट करता है, चुगली करता है तथा मांस एवं मदिरा का सेवन करता हुआ भी अपने इन कुत्सित आचरणों को श्रेष्ठ समझता इस वर्णन से यह स्पष्ट हो जाता है कि मांस और मदिरा का सेवन करने वाले अज्ञानी जीव अकाममृत्यु को प्राप्त कर दुगर्तियों में धक्के खाते रहते हैं। अतः मांस और मदिरा का सेवन कभी नहीं करना चाहिए। 634 ] श्री विपाक सूत्रम् / अष्टम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध