________________ करते हुए के। गलए-गले-कण्ठ में। मच्छकंटए-मत्स्यकण्टक-मत्स्य का कांटा। लग्गे यावि होत्थालग गया था। तते णं-तदनन्तर अर्थात् गले में कांटा लग जाने के अनन्तर। से-वह। महयाए-महती। वेयणाएं-वेदना से। अभिभूते समाणे-अभिभूत-व्याप्त हुआ। सोरिए-शौरिकदत्त। कोडुंबियपुरिसेकौटुम्बिक पुरुषों-अनुचरों को। सद्दावेति-सहावित्ता-बुलाता है, बुलाकर। एवं वयासी-इस प्रकार कहता है। देवाणुप्पिया !-हे भद्रपुरुषो ! तुब्भे-तुम लोग। गच्छह णं-जाओ। सोरियपुरे-शौरिकपुर नामक। णगरे-नगर में। सिंघाडग०-त्रिकोण मार्ग। जाव-यावत् / पहेसु-सामान्य मार्गों-रास्तों पर। महया महया-महान् ऊँचे। सद्देणं-शब्द से। उग्घोसेमाणा उग्घोसेमाणा-उद्घोषणा करते हुए, उद्घोषणा करते हुए। एवं वयह-इस प्रकार कहो। एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। देवाणुप्पिया!-हे महानुभावो!। सोरियस्स-शौरिकदत्त के। गले-कण्ठ में। मच्छकंटए-मत्स्यकण्टक-मच्छी का कांटा। लग्गे-लग गया है। तं-अतः। जोणं-जो।वेजो वा ६-वैद्य या वैद्यपुत्रादि ।सोरियमच्छियस्स-शौरिक नामक मात्स्यिकमच्छीमार के। गलाओ-कण्ठ से। मच्छकंटयं-मत्स्यकण्टक को। नीहरित्तए-निकालने की। इच्छतिइच्छा रखता है अर्थात् जो कांटे को निकालना चाहता है, और जो निकाल देगा। तस्स णं-उस को। सोरिए-शौरिक। विउलं-विपुल-बहुत सी। अत्थसंपयाणं-आर्थिक सम्पत्ति / दलयति-देगा। तते णंतदनन्तर / ते-वे। कोडुंबियपुरिसा-कौटुम्बिक पुरुष। जाव-यावत् / अर्थात् उसकी आज्ञानुसार नगर में। उग्धोसंति-उद्घोषणा कर देते हैं। ततो-तदनन्तर। बहवे-बहुत से। वेजा य ६-वैद्य और वैद्यपुत्रादि। इमं-यह। एयारूवं-इस प्रकार की। उग्धोसिज्जमाणं-उद्घोषित की जाने वाली। उग्घोसणं-उद्घोषणा को। निसामंति निसामित्ता-सुनते हैं, सुनकर / जेणेव-जहां। सोरियगिहे-शौरिकदत्त का घर था, और। जेणेव-जहां पर। सोरिए-शौरिक। मच्छंधे-मत्स्यबन्ध-मच्छीमार था। तेणेव-वहां पर। उवागच्छन्ति उवागच्छित्ता-आ जाते हैं, आकर बहूहिं-बहुत सी। उप्पत्तियाहि य ४-औत्पातिकी बुद्धिविशेष अर्थात् बिना ही शास्त्राभ्यासादि के होने वाली बुद्धि-स्वाभावसिद्ध प्रतिभा, आदि। बुद्धिहिं-बुद्धियों से। परिणामेमाणा-परिणमन को प्राप्त करते हुए अर्थात् सम्यक्तया निदान आदि को समझते हुए उन वैद्यों ने। वमणेहि य-वमनों से तथा। छड्डुणेहि य-छर्दनों से तथा। उवीलणेहि य-अवपीडन-दबाने से और। कवलग्गाहेहि य-कवलग्राहों से, तथा। सल्लुद्धरणेहि य-शल्योद्धरणों से एवं। विसल्लकरणेहि यविशल्यकरणों से। सोरियमच्छंधस्स-शौरिक मत्स्यबन्ध के। गलाओ-कंठ में से। मच्छकंटगंमत्स्यकण्टक-मच्छी के कांटे को। नीहरित्तए-निकालने की। इच्छंति-इच्छा करते हैं, अर्थात् उक्त उपायों से गले में फंसे हुए कांटे को निकालने का उद्योग करते हैं, परन्तु वे। नो चेवणं-नहीं। संचाएंतिसमर्थ हुए। नीहरित्तए-कांटा निकालने को। विसोहित्तए वा-तथा पूय आदि के हरण को, अर्थात् उन के उक्त उपचारों से न तो उस के गले का काँटा ही निकला और ना उस के मुख से निकलता हुआ पूय-पीव तथा रुधिर ही बन्द हुआ। तते णं-तदनन्तर। ते-वे। बहवे-बहुत से। वेजा य ६-वैद्य तथा वैद्यपुत्रादि। जाहे-जब। सोरियस्स-शौरिक के। गलाओ-कण्ठ से। मच्छकंटगं-मत्स्यकण्टक को। नीहरित्तए वानिकालने और। विसोहित्तए-पूयादि के दूर करने में। नो संचाएंति-समर्थ नहीं हुए। ताहे-तब (वे)। संता ३-श्रान्त, तान्त और परितान्त हुए अर्थात् हतोत्साह होकर। जामेव दिसं-जिस दिशा से। पाउब्भूताआये थे। तामेव दिसं-उसी दिशा को। पडिगता-लौट गए-चले गए। तते णं-तदनन्तर। से-वह। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / अष्टम अध्याय [659