________________ कहाए-वृत्तान्त को। लट्ठाई समाणाइं-जान गई हैं, कि। एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। सीहसेणेसिंहसेन / राया-राजा। सामाए देवीए-श्यामा देवी में। मुच्छिते ४-१-मूर्च्छित, २-गृद्ध, ३-ग्रथित और ४-अध्यपपन्न हआ 2 / अम्हं-हमारी। धयाओ-पत्रियों का। नो आढाति-आदर नहीं करता. तथा। णो परिजाणाति-ध्यान नहीं करता, तथा। अणाढायमाणे-आदर न करता हुआ। अपरिजाणमाणे-ध्यान न रखता हुआ। विहरति-विहरण कर रहा है। तं-अतः। सेयं-योग्य है। खलु-निश्चयार्थक है। अहं-हम को अर्थात् हमें अब यही योग्य है कि। सामं देविं-श्यामा देवी को। अग्गिप्पओगेण वा-अग्नि के प्रयोग से अथवा। विसप्पओगेण वा-विष के प्रयोग से अथवा। सत्थप्पओगेण वा-शस्त्र के प्रयोग से। जीवियाओजीवन से। ववरोवित्तए-व्यपरोपित करना, अर्थात् जीवनरहित कर देना। एवं-इस प्रकार। संपेहेंति संपेहित्ता-विचार करती हैं, विचार करने के बाद / सामाए देवीए-श्यामा देवी के। अंतराणि य-अन्तरअर्थात् जिस समय राजा का आगमन न हो। छिद्दाणि य-छिद्र अर्थात् जब राजा के परिवार का कोई भी व्यक्ति न हो। विरहाणि य-विरह अर्थात् जिस समय और कोई सामान्य मनुष्य भी न हो, ऐसे समय की। पडिजागरमाणीओ पडिजागरमाणीओ-प्रतीक्षा करती हुई, प्रतीक्षा करती हुई, विहरंति-विचरण करती हैं। तते णं-तदनन्तर / सा-वह / सामा देवी-श्यामा देवी, जो। इमीसे-इस। कहाए-वृत्तान्त से। लद्धट्ठा समाणा-लब्धार्थ हुई अर्थात् वह इस वृत्तान्त को जान कर / एवं-इस प्रकार / वयासी-कहने लगी। एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। ममं-मुझे। एगूणगाणं-एक कम। पंचण्हं सवत्तीसयाणं-पाँच सौ सपत्नियों को। एक्कूणगाई-एक कम। पंचमाईसयाई-पांच सौ माताएं। इमीसे-इस। कहाए-कथा-वृत्तान्त को। लट्ठाइं समाणाई-जानती हुईं। अन्नमनं-परस्पर। एवं वयासी-कहने लगीं। एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही।सीहसेणे-सिंहसेन / जाव-यावत् / पडिजागरमाणीओ-प्रतीक्षा करती हुईं। विहरंति-विहरण कर रही हैं। तं-अतः। न-नहीं। नजति णं-जानती अर्थात् मैं नहीं जानती हूँ कि / ममं-मुझे। केणतिकिस। कुमारेणं-कुमार अर्थात् कुमौत से। मारेस्संति-मारेंगी। त्ति कट्ट-ऐसा विचार कर। भीया ४-१भीता-भयोत्पादक बात को सुन कर भयभीत हुई, २-त्रस्ता-मेरे प्राण लूट लिये जाएंगे, यह सोच कर त्रास को प्राप्त हुई, ३-उद्विग्ना-भय के मारे उस का हृदय कांपने लगा, ४-संजातभय-हृदय के साथ-साथ उस का शरीर भी कांपने लगा, इस प्रकार १-भीत, २-त्रस्त, ३-उद्विग्न और ४-संजातभय होकर श्यामा देवी। जेणेव-जहां। कोवघरे-कोपगृह था अर्थात् जहां क्रुद्ध हो कर बैठा जाए, ऐसा एकान्त स्थान था। तेणेव-वहां पर। उवागच्छति उवागच्छित्ता-आती है, आकर। ओहय०-अपहतमनःसकंल्पा-जिसके मानसिक संकल्प विफल हो गए हैं अर्थात् उत्साह से रहित मन वाली होकर / जाव-यावत्। झियातिविचार करने लगी। ___ मूलार्थ-तदनन्तर महाराज सिंहसेन श्यामा देवी में मूर्च्छित, गृद्ध, ग्रथित और अध्युपपन्न होकर अन्य देवियों का न तो आदर करता है और न उनका ध्यान ही रखता है, विपरीत इस के उनका अनादर और विस्मरण करता हुआ सानन्द समय बिता रहा है। तदनन्तर उन एक कम पांच सौ देवियों-रानियों की एक कम पांच सौ माताओं ने जब यह जाना कि "-महाराज सिंहसेन श्यामादेवी में मूर्छित, गृद्ध, ग्रथित और 690 ] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध