________________ दासियां, पांच सौ बलिकर्म-शरीर की स्फूर्ति के लिए तैलादि मर्दन करने वाली दासियां, पांच सौ शय्या बिछाने वाली दासियां, पांच सौ अन्त:पुर का पहरा देने वाली दासियां, पांच सौ बाहिरका पहरा देने वाली दासियां, पांच सौ माला गूंथने वाली दासियां, पांच सौ आटा आदि पीसने वाली अथवा सन्देशवहन करने वाली दासियां, और बहुत सा हिरण्य, सुवर्ण, कांस्यकांसी, वस्त्र, विपुल बहुत धन, कनक, रत्न, मणि, मोती, शंख, मूंगा, रक्त रत्न, उत्तमोत्तम वस्तुएं, स्वापतेय-रुपया पैसा आदि द्रव्य, दिया जो इतना पर्याप्त था कि सात पीढ़ी तक चाहे इच्छापूर्वक दान दिया जाए, स्वयं उस का उपभोग किया जाए, या खूब उसे बांटा जाए तो भी वह समाप्त नहीं हो सकता था। -उप्पिं जाव विहरति-यहां पठित जाव-यावत् पद से विवक्षित-पासायवरगए फुट्टमाणेहिं-से लेकर-पच्चणुभवमाणे-यहां तक के पद तृतीय अध्याय में लिखे जा चुके हैं। अन्तर मात्र इतना है कि वहां अभग्नसेन का नाम है, जब कि प्रस्तुत में सिंहसेन का। शेष वर्णन समान ही है। ___ -नीहरणं०-यहां नीहरण पद सांकेतिक है जो कि-तए णं से सीहसेणे कुमारे बहुहिं राईसर० जाव सत्थवाहप्पभितीहिं सद्धिं संपरिवुडे रोयमाणे कन्दमाणे विलवमाणे महासेणस्स रण्णो महया इड्ढिसक्कारसमुदएणं नीहरणं करेइ 2 त्ता बहई लोइयाई मयकिच्चाई करेइ- इन पदों को तथा उसके आगे दिया गया बिन्दु-तते णं ते बहवे राईसर० जाव सत्थवाहा सीहसेणं कुमारं महया 2 रायाभिसेगेणं अभिसिंचंति तते णं सीहसेणे कुमारे-इन पदों का परिचायक है। इन पदों का अर्थ पंचम अध्याय में किया जा चुका है। अन्तर मात्र इतना है कि वहां शतानीक राजा तथा उदयन कुमार का वर्णन है जब कि प्रस्तुत में महासेन राजा और सिंहसेन कुमार का / नामगत भिन्नता के अतिरिक्त शेष वृत्तान्त समान है। तथा-महया०-यहां के बिन्दु से अभिमत पाठ की सूचना द्वितीय अध्याय में दी जा चुकी इसके पश्चात् क्या हुआ, अब सूत्रकार उसका वर्णन करते हुए कहते हैं मूल-तते णं से सीहसेणे राया सामाए देवीए मुच्छिते 4 अवसेसाओ देवीओणो आढाति, णो परिजाणाति, अणाढायमाणे अपरिजाणमाणे विहरति। तते णं तासिं एगूणगाणं पंचण्हं देवीसयाणं एक्कूणाई पंचमाईसयाइं इमीसे कहाए लद्धट्ठाई समाणाइं एवं खलु सीहसेणे राया सामाए देवीए मुच्छिते 4 अम्हं धूयाओ नो आढाति नो परिजाणाति, आणाढायमाणे, अपरिजाणमाणे 688 ] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध