________________ कह कर उल्लेख किया है-प्रपञ्चुलादयो मत्स्यबन्धनविशेषाः। कोषकारों ने इन में से कई एक की संस्कृत छाया दी है और कई एक को देश्य माना है। तथा-मछली पकड़ने के कांटों को गल कहते हैं। कूटपाश भी मछली पकड़ने का जालविशेष ही होता है। वल्कबन्ध का * अर्थ होता है-त्वचा का बना हुआ बन्धन / सूत्र से निर्मित बन्धन सूत्रबन्धन और केशों का बना हुआ बन्धन बालबन्धन कहलाता है। तात्पर्य यह है कि सर्वप्रथम मत्स्यों को अनेकविध जालों द्वारा पकड़ा जाता था फिर उन्हें वल्कल आदि के बंधनों से बांध दिया जाता था। ___कोषकार ने "-मच्छखले-मत्स्यखल-" का अर्थ "मछलियों के सुखाने की जंगह" ऐसा किया है, और टीकाकार श्री अभयदेवसूरि "-मच्छखलए करेंति-" का अर्थ करते हैं "स्थंडिलेषु मत्स्यपुंजान् कुर्वन्ति-" अर्थात् भूमि पर मछलियों के ढेर लगाते हैं। प्रकृत में ये दोनों ही अर्थ सुसंगत हैं। ___-अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे-यहां पठित जाव-यावत् पद से विवक्षित पदों का वर्णन प्रथम अध्याय में तथा-सोहमच्छे य जाव पडागातिपडागे-यहां पठित जाव-यावत् पद से अपेक्षित पाठ पीछे इसी अध्याय में तथा –सुरं च ६-यहां के अंक से अभिमत पाठ पीछे इसी अध्याय में तथा –आसाएमाणे 4- यहां दिए गए अंकों से अभिमत पाठ तृतीय अध्याय में लिखा जा चुका है। अब सूत्रकार शौरिकदत्त के अग्रिम जीवन के वृत्तान्त का वर्णन करते हुए कहते हैं. मूल-तते णं तस्स सोरियदत्तस्स मच्छंधस्स अन्नया कयाइ ते मच्छे सोल्ले यतलिए य भजिए आहारेमाणस्स मच्छकंटए गलए लग्गे यावि होत्था। तते णं से सोरिए महयाए वेयणाए अभिभूते समाणे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेति सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छहणं तुब्भे देवाणुप्पिया ! सोरियपुरेणगरे सिंघाडग० जाव पहेसु महया महया सद्देणं उग्धोसेमाणा उग्घोसेमाणा एवं वयह-एवं खलु देवाणुप्पिया ! सोरियस्स मच्छकंटए गलए लग्गे।तं जोणं इच्छति वेजो वा 6 सोरियमच्छियस्स मच्छकंटयं गलाओ नीहरित्तए, तस्स णं सोरिए विपुलं अत्थसंपयाणं दलयति।तते णं से काडुंबियपुरिसा जाव उग्घोसंति। ततो बहवे वेजा य६ इमं एयारूवं उग्घोसणं उग्घोसिजमाणं निसामंति निसामित्ता जेणेव सोरियगिहे जेणेव सोरियमच्छंधे तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता बहूहिं उप्पत्तियाहि य 4 बुद्धीहि परिणामेमाणा वमणेहि य छड्डणेहि य उवीलणेहि यकवलग्गाहेहि य सल्लुद्धरणेहि य विसल्लकरणेहि य इच्छंति सोरियमच्छंधस्स प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / अष्टम अध्याय [657