________________ ववरोवेत्ता-व्यपरोपित करते हैं-पृथक् करते हैं, जीवन से पृथक् कर के।सिरियस्स-श्रीद। महाणसियस्समहानसिक को। उवणेति-अर्पण करते हैं, तथा। से-उस के। अन्ने य-अन्य। बहवे-बहुत से। तित्तिरा य-तित्तिर। जाव-यावत्। मयूरा य-मयूर। पंजरंसि-पिंजरों में। संनिरुद्धा-संनिरुद्ध-बन्द किए हुए। चिटुंति-रहते थे। अन्ने य-तथा और। बहवे-अनेक। दिनभतिभत्तवेयणा-जिन्हें वेतनरूप से रुपया पैसा और धान्य घृतादि दिया जाता था, ऐसे नौकर। पुरिसे-पुरुष। ते-उन / बहवे-अनेक। तित्तिरे यतित्तिरों। जाव-यावत्। मयूरे य-मयूरों को। जीवंतए चेव-जीते हुओं को ही। निप्पंखेंति निप्पंखेत्तापक्ष-परों से रहित करते हैं, पंखरहित करके। सिरियस्स-श्रीद। महाणसियस्स-महानसिक को। उवणेतिअर्पण करते हैं। तते णं-तदनन्तर। से-वह। सिरिए-श्रीद। महाणसिए-महानसिक। बहूणं-अनेक। जलयर-जलचरों-जल में चलने वाले जीवों। थलयर-स्थलचरों-स्थल में चलने वाले जीवों। खहयराणंखचरों-आकाश में चलने वाले जीवों के। मंसाइं-मांसों को। कप्पणी-कप्पियाई करेति-कल्पनी-छुरी से कर्तित करता है अर्थात् उन्हें काट कर खण्ड-खण्ड बनाता है। तंजहा-जैसे कि। सहखंडियाणि यसूक्ष्मखण्ड और। वट्ट-वृत्त-वर्तुल-गोल। दीह-दीर्घ-लम्बे। रहस्सखंडियाणि-तथा ह्रस्व-छोटे-छोटे खण्ड, जो कि। हिमपक्काणि-हिम-बर्फ से पकाए गए हैं / जम्म-जन्म से अर्थात् स्वतः ही। घम्म-धर्मगरमी तथा। मारुय-मारुत-वायु से। पक्काणि य-पकाए गए हैं। कालाणि य-तथा जो काले किए गए हैं। हेरंगाणि य-और हिंगुल-सिंग़रफ के समान लाल वर्ण वाले किये गए हैं। महिट्ठाणि य-जो तक्रसंस्कारित हैं, और। आमलगरसियाणि य-जो आमलक-आंवले के रस से भावित हैं, तथा। मुद्दिया-मुद्वीकाद्राक्षा। कविट्ठ-कपित्थ-कैथ। दालिमरसियाणि य-और अनार के रस से भावित हैं। मच्छरसियाणि य-तथा जो मत्स्यरस से संस्कारित हैं और जो। तलियाणि य-तैलादि में तले हुए हैं। भजियाणि यअंगारादि पर भूने हुए हैं। सोल्लियाणि य-और जो शूलाप्रोत हैं अर्थात् शूल में पिरो कर पकाए गए हैं, उन को। उवक्खडावेति-तैयार करता है। अन्ने य-और। बहवे-बहुत से। मच्छरसए य-मत्स्यों के मांसों के रस। एणेजरसए य-एणों-मृगों के मांसों के रस। तित्तिर-तित्तिरों के मांसों के रस। जाव-यावत्। मयूररसए य-मयूरों-मोरों के मांसों के रस, तैयार करता है। अन्नं च-और / विउलं-विपुल / हरियसागंहरे साग।उवक्खडावेति २-तैयार करता है, तैयार करके।मित्तस्स रण्णो-मित्र नरेश के / भोयणमंडवंसिभोजनमंडप में-भोजनालय में। भोयणवेलाए-भोजन के समय। उवणेइ-राजा को अर्पण करता थाभोजनार्थ प्रस्तुत किया करता था। अप्पणा वि यणं-और स्वयं भी। से-वह / सिरिए-श्रीद। महाणसिएमहानसिक। तेसिं च-उन। बहूहि-अनेक। जाव-यावत्। जलयर-जलचर / थलयर-स्थलचर / खहयरखेचर जीवों के। मंसेहि-मांसों से। रसेहि य-तथा रसों से। हरियसागेहि य-तथा हरे शाकों से, जो कि। सोल्लेहि य-शूलाप्रोत कर पकाए गए हैं। तलिएहि य-तैलादि में तले हुए हैं। भजिएहि य-अग्नि आदि पर भूने हुए हैं, के साथ। सुरं च ६-छः प्रकार की सुराओं-मदिराओं का। आसाएमाणे ४-आस्वादनादि 630 ] श्री विपाक सूत्रम् / अष्टम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध