________________ कदाचित् शरीरे युगपदेव षोडश रोगातंकाः प्रादुर्भूताः। तद्यथा-१श्वासः, २-कासः / यावत् १६-कुष्ठः। ततः स उम्बरदत्तो दारकः षोडशभी रोगातंकैरभिभूतः सन् शटितहस्त यावद् विहरति / एवं खलु गौतम ! उम्बरदत्तो दारकः पुरा यावद् विहरति / पदार्थ-तते णं-तदनन्तर। सा-उस। गंगादत्ता-गङ्गादत्ता ने। णवण्हं मासाणं-नवमास। बहुपडिपुण्णाणं-लगभग परिपूर्ण होने पर। दारगं-बालक को। पयाया-जन्म दिया। ठिति-माता पिता ने स्थितिपतिता-पुत्रजन्मसम्बन्धी उत्सवविशेष / जाव-यावत् / नामधेजं करेंति-नामकरण संस्कार किया। जम्हा णं-जिस कारण। अम्हं-हमारा। इमे दारए-यह बालक। उम्बरदत्तस्स-उम्बरदत्त / जक्खस्स-यक्ष की। उवाइयलद्धए-मन्नत मानने से उपलब्ध हुआ है-प्राप्त हुआ है। तं-अतः। होउ णं-हो। दारएहमारा यह बालक। उम्बरदत्ते-उम्बरदत्त। नामेणं-नाम से। तते णं-तदनन्तर। से-वह। उम्बरदत्तेउम्बरदत्त / दारए-बालक। पंचधातीपरिग्गहिते-पंच धाय माताओं से परिगृहीत हुआ। परिवड्ढति-वृद्धि को प्राप्त करने लगा। तते णं-तदनन्तर / से-वह / सागरदत्ते-सागरदत्त / सत्थवाहे-सार्थवाह-संघनायक। जहा-जिस प्रकार / विजयमित्ते-विजयमित्र का वर्णन किया है, तद्वत् / कालधम्मुणा-कालधर्म से संयुक्त हुआ अर्थात् मर गया। गंगादत्ता वि-गङ्गादत्ता भी कालधर्म को प्राप्त हुई। उम्बरदत्ते वि-उम्बरदत्त भी। निच्छूढे-घर से बाहर निकाल दिया गया। जहा-जैसे। उझियए-उज्झितक कुमार अर्थात् उस का घर से. निकलना द्वितीय अध्ययन में वर्णित उज्झितक कुमार के समान जान लेना चाहिए। तते णं-तदनन्तर। अन्नया कयाइ-किसी अन्य समय। तस्स-उस। उम्बरदत्तस्स-उम्बरदत्त के। सरीरगंसि-शरीर में। जमगसमगमेव-एक ही समय में।सोलस-सोलह प्रकार के रोगायंका-रोगातंक-भयंकर रोग। पाउब्भूताप्रादुर्भूत हुए-उत्पन्न हो गए। तंजहा-जैसे कि।१-सासे-१-श्वास। २-कासे-२-कास-खांसी। जावयावत्। १६-कोढे-१६-कुष्ठ रोग। तते णं-तदनन्तर। से-वह। उम्बरदत्ते-उम्बरदत्त। दारए-बालक। सोलसहि-सोलह प्रकार के।रोगायंकेहि-रोगातंकों से।अभिभूते समाणे-अभिभूत हुआ।सडियहत्थगले हुए हस्तादि से युक्त। जाव-यावत्। विहरति-समय व्यतीत कर रहा है। एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। गोतमा !-हे गौतम ! उम्बरदत्ते दारए-उम्बरदत्त बालक। पुरा-पुरातन। जाव-यावत् कर्मों को भोगता हुआ। विहरति-समय बिता रहा है। मूलार्थ-तत्पश्चात् लगभग नव मास परिपूर्ण हो जाने पर गंगादत्ता ने एक बालक को जन्म दिया। माता-पिता ने स्थितिपतिता नामक उत्सवविशेष मनाया और बालक उम्बरदत्त यक्ष की मन्नत मानने से प्राप्त हुआ है, इस लिए उन्होंने इस का उम्बरदत्त यह नाम रखा, अर्थात् माता-पिता ने उस का उम्बरदत्त नाम स्थापित किया। तदनन्तर उम्बरदत्त बालक पांच धाय माताओं से सुरक्षित हो कर वृद्धि को प्राप्त करने लगा। तदनन्तर अर्थात् उम्बरदत्त के युवा हो जाने पर विजयमित्र की भान्ति सागरदत्त सार्थवाह समुद्र में जहाज के जलनिमग्न हो जाने के कारण कालधर्म को प्राप्त . हुआ तथा गंगादत्ता भी पतिवियोगजन्य असह्य दुःख से दुखी हुई कालधर्म को प्राप्त हुई, 604 ] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध