________________ परिहेति परिहित्ता महरिहं पुप्फारुहणं, वत्थारुहणं, गंधारुहणं, चुण्णारुहणं करेति करित्ता-" इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। - "-असणं ४-तथा-सुरं च ६-यहां के अंकों से विवक्षित पाठ का विवरण तृतीय अध्याय में किया जा चुका है। तथा आसाएमाणी ४-यहां पर दिये 4 के अंक से - विसाएमाणी, परिभाएमाणी, परिभुंजेमाणी-इन पदों का ग्रहण करना चाहिए। इन पदों का अर्थ द्वितीय अध्याय में दिया जा चुका है। अन्तर मात्र इतना है कि वहां ये शब्द बहुवचनान्त हैं जब कि प्रस्तुत में एकवचनान्त। अतः अर्थ में एकवचन की भावना कर लेनी चाहिए। -सम्पुण्णदोहला ४-यहां पर दिए गए 4 के अंक से विवक्षित-सम्माणियदोहला, विणीयदोहला, वोच्छिन्नदोहला, सम्पन्नदोहला-इन पदों की व्याख्या भी द्वितीय अध्याय में की जा चुकी है। प्रस्तुत सूत्र में सेठानी गंगादत्ता के द्वारा देवपूजा करना तथा उसके गर्भ में धन्वंतरि वैद्य के जीव का आना, एवं दोहद की उत्पत्ति और उस की पूर्ति आदि का वर्णन किया गया है। अब सूत्रकार अग्रिम सूत्र में गर्भस्थ जीव के जन्म आदि का वर्णन करते हैं मूल-तते णं सा गंगादत्ता णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया। ठिति जाव नामधेनं करेंति-जम्हा णं अम्हं इमे दारए उंबरदत्तस्स जक्खस्स उवाइयलद्धए, तं होउ णं दारए उंबरदत्ते नामेणं। तते णं से उंबरदत्ते दारए * पंचधातीपरिग्गहिते जाव परिवड्दति। तते णं से सागरदत्ते सत्थवाहे जहा - विजयमित्ते कालधम्मुणा संजुत्ते, गंगादत्ता वि, उम्बरदत्ते वि निच्छूढे जहा उज्झियए। तते णं तस्स उम्बरदत्तस्स अन्नया कयाइ सरीरगंसि जमगसमगमेव सोलस रोगायंका पाउब्भूया, तंजहा-१-सासे, २-कासे, जाव १६-कोढे। तते णं से उम्बरदत्ते दारए सोलसहिं रोगायंकेहिं अभिभूते समाणे सडियहत्थ. जाव विहरति। एवं खलु गोतमा ! उम्बरदत्ते दारए पुरा जाव विहरति। छाया-ततः सा गङ्गादत्ता नवसु मासेषु बहुपरिपूर्णेषु दारकं प्रयाता। स्थिति यावद् नामधेयं कुरुतः यस्मादस्माकमयं दारकः उम्बरदत्तस्य यक्षस्योपयाचितलब्धः तद् भवतु दारकः उम्बरदत्तो नाम्ना। ततः स उम्बरदत्तो दारकः पञ्चधात्रीपरिगृहीतः यावत् परिवर्द्धते / ततः स सागरदत्तः सार्थवाहो यथा विजयमित्रः कालधर्मेण संयुक्तः। गङ्गादत्तापि। उम्बरदत्तोऽपि निष्कासितो यथोज्झितकः। ततस्तस्योम्बरदत्तस्यान्यदा प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [603