________________ बहुभिर्नगरमहिलाभिः सार्धं तद् विपुलमशनं 4 सुरां च 6 आस्वादयन्ती दोहदं विनयति 2 यस्याः एव दिशाः प्रादुर्भूता तामेव दिशं प्रतिगता / ततः सा गंगादत्ता भार्या संपूर्णदोहदा 4 तं गर्भं सुखसुखेन परिवहति। ___पदार्थ-तते णं-तदनन्तर। से-वह। धन्तरी-धन्वन्तरि / वेज्जे-वैद्य। ततो-उस। णरगाओनरक से। अणंतरं-अन्तररहित-सीधा। उव्वट्टित्ता-निकल कर। इहेव-इसी। पाडलिसंडे-पाटलिषण्ड। णगरे-नगर में। गंगादत्ताए-गंगादत्ता / भारियाए-भार्या की। कुच्छिंसि-कुक्षि-उदर में। पुत्तत्ताए-पुत्ररूप से। उववन्ने-उत्पन्न हुआ। तते णं-तदनन्तर। तीसे-उस। गंगादत्ताए-गंगादत्ता। भारियाए-भार्या के। तिण्हं-तीन / मासाणं-मासों के। बहुपडिपुण्णाणं-लगभग पूर्ण होने पर। अयमेयारूवे-यह इस प्रकार का। दोहले-दोहद-गर्भिणी स्त्री का मनोरथ। पाउब्भूते-उत्पन्न हुआ। ताओ अम्मयाओ-वे माताएँ / धण्णाओ णं-धन्य हैं। जाव-यावत् / फले-उन्होंने ही जीवन के फल को प्राप्त किया हुआ है। जाओ णं-जो। विउलं-विपुल। असणं ४-अशन-पानादिक। उवक्खडावेंति २-तैयार कराती हैं, करा कर। बहूहि-अनेक। मित्त-मित्र, ज्ञातिजन आदि की। जाव-यावत् महिलाओं से। परिवुडाओ-परिवृत-घिरी हुई / तं-उस। विउलं-विपुल / असणं ४-अशनादिक चतुर्विध आहार तथा। सुरं च 6-6 प्रकार के सुरा आदि पदार्थों और / पुप्फ-पुष्पों। जाव-यावत् अर्थात् वस्त्रों, सुगन्धित पदार्थों, मालाओं और अलंकारों को। गहाय-लेकर। पाडलिसंडं-पाटलिषंड। णगरं-नगर के। मझमझेणं-मध्य भाग में से। पडिणिक्खमंसि २-निकलती हैं, निकल कर। जेणेव-जहां। पुक्खरिणी-पुष्करिणी है। तेणेव-वहां। उवागच्छन्ति-आती हैं, आकर। पुक्खरिणिं-पुष्करिणी का। ओगाहंति २-अवगाहन करती हैं-उस में ‘प्रवेश करती हैं, प्रवेश करके / ण्हाया-स्नान की हुईं। जाव-यावत्। पायच्छित्ताओ-अशुभ स्वप्नादि के फल को विफल करने के लिए मस्तक पर तिलक एवं मांगलिक कार्य की हुईं। तं-उस। विउलं-विपुल। :.' असणं ४-अशनादि का। बहूहिं-अनेक मित्र, ज्ञातिजन आदि की महिलाओं के।सद्धिं-साथ। आसादेंति ४-आस्वादनादि करती हैं, अपने / दोहलं-दोहद को। विणेति-पूर्ण करती हैं। एवं-इस प्रकार। संपेहेति २-विचार करती है, विचार करके / कल्लं-प्रात:काल। जाव-यावत्। जलंते-देदीप्यमान सूर्य के उदित हो जाने पर। जेणेव-जहां। सागरदत्ते-सागरदत्त / सत्थवाहे-सार्थवाह-संघनायक था। तेणेव-वहां पर। उवागच्छति २-आती है, आकर। सागरदत्तं-सागरदत्त। सत्थवाहं-सार्थवाह को। एवं-इस प्रकार। वयासी-कहने लगी। धन्नाओणं-धन्य हैं। ताओ अम्मयाओ-वे माताएं। जाव-यावत्। विणेति-दोहद की पूर्ति करती हैं। तं-इस लिए। इच्छामि णं-मैं चाहती हूँ। जाव-यावत्। विणित्तए-अपने दोहद की पूर्ति करना। तते णं-तदनन्तर / से-वह / सागरदत्ते-सागरदत्त / सत्थवाहे-सार्थवाह / गंगादत्ताए-गंगादत्ता। भारियाए-भार्या को। एयमटुं-इस अर्थ-प्रयोजन के लिए। अणुजाणेति-आज्ञा दे देता है। तते णंतदनन्तर।सा-वह / गंगादत्ता-गंगादत्ता / सागरदत्तेणं-सागरदत्त / सत्थवाहेणं-सार्थवाह से।अब्भणुण्णाया समाणी-अभ्यनुज्ञात हुई अर्थात् आज्ञा प्राप्त कर के। विपुलं-विपुल।असणं४-अशनादिक। उवक्खडावेति २-तैयार कराती है, तैयार करा के। तं-उस। विपुलं-विपुल। असणं ४-अशनादिक और। सुरं च ६सुरा आदि छः प्रकार के मद्यों का। सुबहुं-बहुत ज्यादा। पुष्फ०-पुष्पादि को। परिगेण्हावेति २-ग्रहण प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [599