________________ ही। ममं-मेरे लिए यही। सेयं-कल्याणकारी है, कि। कल्लं जाव-प्रातःकाल यावत्। जलंते-सूर्य के देदीप्यमान हो जाने पर अर्थात् सूर्योदय के बाद।सागरदत्तं-सागरदत्त / सत्थवाहं-सार्थवाह को।आपुच्छित्तापूछ कर। सुबहुं-बहुत ज्यादा। पुष्फवत्थगंधमल्लालंकारं-पुष्प, वस्त्र, गन्ध, माला तथा अलंकार ये सब पदार्थ / गहाय-लेकर। बहूहिं-बहुत से। मित्तणाइनियगसयणसंबंधिपरिजणमहिलाहिं-मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी और परिजन की महिलाओं के। सद्धिं-साथ। पाडलिसंडाओ-पाटलिपंड। णगराओनगर से। पडिनिक्खमित्ता-निकल कर।बहिया-बाहर / जेणेव-जहां पर। उंबरदत्तस्स-उम्बरदत्त नामक। जक्खस्स-यक्ष का। जक्खायतणे-यक्षायतन-स्थान है। तेणेव-वहां पर। उवागच्छित्ता-जाकर। तत्थ णं-वहां पर। उंबरदत्तस्स-उम्बरदत्त / जक्खस्स-यक्ष की। महरिहं-महार्ह-बड़ों के योग्य। पुष्फच्चणंपुष्पार्चन-पुष्पों से पूजन। करेत्ता-करके। जाणुपादपडियाए-घुटने टेक उनके चरणों पर पड़ी हुई। उवयाइत्तए-उन से याचना करूं कि। देवाणुप्पिया !-हे महानुभाव ! / जति णं-यदि / अहं-मैं। दारगंएक भी (जीवित रहने वाले) बालक, अथवा / दारियं-(जीवित रहने वाली) बालिका को। पयामि-जन्म दूं। तो णं-तो। अहं-मैं। तुब्भं-आप के। जायं च-याग-देवपूजा। दायं च-दान-देय अंश। भागं चभाग-लाभ का अंश तथा। अक्खयणिहिं च-अक्षयनिधि-देवभंडार की। अणुवड्ढेस्सामि-वृद्धि करूंगी। त्ति कट्ट-इस प्रकार कह कर के। ओवाइयं-उपयाचित-इष्टवस्तु की। उवाइणित्तए-प्रार्थना करने के लिए। एवं-इस प्रकार। संपेहेति संपेहित्ता-विचार करती है, विचार कर। कल्लं जाव-प्रात:काल यावत् / जलंते-सूर्य के उदित होने पर। जेणेव-जहां पर। सागरदते-सागरदत्त / सत्थवाहे-सार्थवाह था। तेणेववहीं पर। उवागच्छति उवागच्छित्ता-आती है, आकर। सागरदत्तं-सागरदत्त। सत्थवाहं-सार्थवाह को। एवं-इस प्रकार। वयासी-कहने लगी। एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। देवाणुप्पिया !-हे महानुभाव! अहं-मैं ने। तुब्भेहिं-आप के। सद्धिं-साथ। जाव-यावत् अर्थात् उदार-प्रधान काम भोगों का सेवन करते हुए भी आज तक एक भी जीवित रहने वाले पुत्र या पुत्री को। न पत्ता-प्राप्त नहीं किया। तं-इसलिए। देवाणुप्पिए !-हे महानुभाव ! इच्छामि णं-मैं चाहती हूं कि। तुब्भेहिं-आप से। अब्भणुण्णाताअभ्यनुज्ञात हुई-अर्थात् आज्ञा मिल जाने पर। जाव-यावत् अर्थात् इष्टवस्तु की प्राप्ति के लिए उम्बरदत्त यक्ष की। उवाइणित्तए-प्रार्थना करूं अर्थात् मनौती मनाऊं। तते णं-तदनन्तर। से-वह। सागरदत्तेसागरदत्त। गंगादत्तं-गङ्गादत्ता। भारियं-भार्या के प्रति। एवं वयासी-इस प्रकार बोला। देवाणुप्पिए!-हे महाभागे !-ममं पि य णं-मेरा भी। एस चेव-यही। मणोरहे-मनोरथ-कामना है कि। कहं णं-किसी तरह भी। तुम-तुम।दारगंवा-जीवित रहने वाले बालक अथवा। दारियं वा-बालिका को। पयाएज्जासिजन्म दो, इतना कह कर। गंगादत्तं भारियं-गंगादत्ता भार्या को। एयमटुं-इस अर्थ-प्रयोजन के लिए। अणुजाणेति-आज्ञा दे देता है, अर्थात् उस के उक्त प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है। मूलार्थ-उस समय सागरदत्त की गंगादत्ता भार्या जातनिद्रुता थी, उस के बालक उत्पन्न होते ही विनाश को प्राप्त हो जाते थे।किसी अन्य समय मध्यरात्रि में कुटुम्बसम्बन्धी चिन्ता से जागती हुई उस गंगादत्ता सार्थवाही के मन में जो संकल्प उत्पन्न हुआ, वह निम्नोक्त है 584 ] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध