________________ ऐसा उल्लेख पाया जाता है। परन्तु चौथा भेद-अप्पतिद्विते (अप्रतिष्ठितः ) यह किया गया है। अब देखिए दोनों में क्या सम्बन्ध रहा ? जब चारों स्थानों में क्रोध स्थित होता है तो वह अप्रतिष्ठित कैसे ? सारांश यह है कि यहां पर भी भावार्थ की प्रधानता है न कि शब्दार्थ की। वृतिकार भी लिखते हैं कि-आक्रोशादिकारणनिरपेक्षः केवल क्रोधवेदनीयोदयाद् यो भवति सोऽप्रतिष्ठितः, अयं च चतुर्थभेदः जीवप्रतिष्ठितोऽपि आत्मादिविषयेऽनुत्पन्नत्वादप्रतिष्ठितः उक्तो न तु सर्वथाऽप्रतिष्ठितः, चतुःप्रतिष्ठितत्त्वस्याभावप्रसंगात् सूत्र २४९)-अर्थात् यह चौथा भेद यद्यपि जीव में ही प्रतिष्ठित-अवस्थित होता है, तथापि इसे अप्रतिष्ठित कहने का यही कारण है कि यह किसी आत्मादि का अवलम्बन कर उत्पन्न नहीं होता, किन्तु दुर्वचनादि कारण की अपेक्षा न रखता हुआ केवल क्रोधवेदनीय के उदय से उत्पन्न होने के कारण इसे अप्रतिष्ठित कहा गया है। परन्तु सर्वथा यह भेद अप्रतिष्ठित नहीं है, क्योंकि यदि यह सर्वथा अप्रतिष्ठित हो जाए तो क्रोध में चतुःप्रतिष्ठितत्व का अभाव हो जाएगा अर्थात् क्रोध को चतुः-प्रतिष्ठित कहना असंगत ठहरेगा, जो कि सिद्धान्त को इष्ट नहीं प्रस्तुत सूत्र में-जायनिया-आदि पढ़े गए पदों की व्याख्या निम्नोक्त है १-जायनिढुया-जातनिद्रुता-अर्थात् जिस की सन्तान उत्पन्न होते ही मृत्यु को प्राप्त हो जाए, उसे जातनिद्रुला कहते हैं। - २-पुव्वरत्तावरत्तकुडुंबजागरियाए-पूर्वरात्रापररात्रकुटुम्बजागरिकया-" अर्थात् पूर्वरात्रापररात्र शब्द मध्यरात्रि आधीरात के लिए प्रयुक्त होता है। कुटुम्ब-परिवार सम्बन्धी जागरिका-चिन्तन, कुटुम्बजागरिका कहा जाता है।आधीरात के समय की गई कुटुम्बजागरिका पूर्वरात्रापररात्रकुटुम्बजागरिका कहलाती है। प्रस्तुत में यह पद तृतीयान्त होने से-आधीरात में किए गए परिवारसम्बन्धी चिन्तन के कारण-इस अर्थ का परिचायक है। . ३-सपुण्णाओ-सपुण्या:-" अर्थात् पुण्य से युक्त स्त्रियां सपुण्या कहलाती हैं। . ४-कयत्थाओ-कृतार्था:-" अर्थात् जिन के अर्थ-प्रयोजन निष्पन्न-सिद्ध हो चुके हैं, उन्हें कृतार्था कहा जाता है। ५-कयलक्खणाओ-कृतलक्षणा:-" अर्थात् कृत-फलयुक्त हैं लक्षण-सुखजन्य हस्तादिगत शुभ रेखाएं जिन की, उन्हें कृतलक्षणा कहते हैं। ____६-नियगकुच्छिसंभूयाइं-निजस्य कुक्षौ उदरे संभूतानि समुत्पन्नानीतिनिजकुक्षि-संभूतानि निजापत्यानीत्यर्थः-" अर्थात् निज-अपने उदर-पेट से संभूत-उत्पन्न हुईं अपत्य-सन्तानें निजकुक्षिसंभूत कहलाती हैं। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [589