________________ ७-थणदुद्धलुद्धगाइं-स्तनदुग्धे लुब्धकानि यानि तानि स्तनदुग्धलुब्धकानि-". अर्थात् स्तनों के दूध में लुब्धक अभिलाषा रखने वाली अपत्य-स्तनदुग्धलुब्धक कहलाती ८-महुरसमुल्लावगाई-समुल्लापः बालभाषणं स एव समुल्लापकः, मधुरः समुल्लापको येषां तानि मधुरसमुल्लापकानि-" अर्थात् मधुर-सरस समुल्लापक-बालभाषण करने वाली अपत्य मधुरसमुल्लापक कही जाती हैं। ९-मम्मणपयंपियाई-मन्मनम्-इत्यव्यक्तध्वनिरूपं प्रजल्पितं भाषणं येषां तानि मन्मनप्रजल्पितानि-" अर्थात् मन्मन इस प्रकार के अव्यक्त शब्दों के द्वारा बोलने वाली अपत्य-मन्मनप्रजल्पित कही जाती हैं। १०-थणमूला कक्खदेसभागं अतिसरमाणगाई-स्तनमूलात् कक्षदेशभागमभिसरन्ति-" अर्थात् जो स्तन के मूलभाग से लेकर कक्ष (काँख) तक के भाग में अभिसरण करते रहते हैं वे। अभिसरण का अर्थ है निर्गम-प्रवेश अर्थात् जो अपत्य कभी स्तनमूल से निकल कर कक्षभाग में प्रवेश करती हैं और कभी उस से निकल जाती हैं। ११-मुद्धगाई-मुग्धकानि, सरलहृदयानि-" अर्थात् सरलहृदय-छल कपट से रहित एवं विशुद्ध हृदय वाली अपत्य मुग्धक कहलाती हैं। १२-पुणो य कोमलकमलोवमेहिं हत्थेहिं गेण्हिउण उच्छंगनिवेसियाई-पुनश्च कोमलं यत्कमलं तेनोपमा ययोस्ते तथा ताभ्यां हस्ताभ्यां गृहीत्वा उत्संगनिवेशितानि अंके स्थापितानि-" अर्थात् जो कमल के समान कोमल हाथों द्वारा पकड़ कर गोदी में बैठा रखा है, अथवा वे अपत्य जिन्हें उन्हीं के कमल-सदृश हाथों से पकड़ कर गोदी में बैठा रखा है। तात्पर्य यह है कि माता कई बार प्रेमातिरेक से बच्चों को गोदी में लेने के लिए अपनी भुजाओं को फैलाती हैं, प्रसृत भुजाओं को देख कर बालक अपनी लड़खड़ाती टांगों से लुढ़कता हुआ या चलता हुआ माता की ओर बढ़ता है, तब माता झटिति उसे अपने कमलसदृश कोमल हाथों से पकड़ कर एवं उठा कर छाती से लगा लेती है और गोदी में बैठा लेती है, अथवा बालकों के कमलसमान कोमल छोटे -छोटे हाथों को पकड़ कर चलाती हुईं उन्हें गोदी में बैठा लेती हैं, इन्हीं भावों को सूत्रकार महानुभाव द्वारा ऊपर के पदों में अभिव्यक्त किया गया है। १३-दिति समुल्लावए सुमहुरे पुणो पुणो मंजुलप्पभणिते-इन पदों की व्याख्या में दो मत पाये जाते हैं, जो कि निम्नोक्त हैं (1) प्रथम मत में समुल्लापक के सुमधुर और मंजुलप्रभणित- ये दोनों पद 590 ] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध