________________ 2 त्ता समणेणं अब्भणुण्णाते समाणे बिलमिव पन्नगभूते अप्पाणेणं आहारमाहारेइ संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति। छाया-तस्मिन् काले 2 भगवान् गौतमस्तथैव यत्रैव पाटलिपंडं नगरं तत्रैवोपागच्छति 2 पाटलिषंडं नगरं पौरस्त्येन द्वारेणानुप्रविशति / तत्र पश्यत्येकं पुरुषं कच्छूमन्तं कुष्ठिकं दकोदरिकं भगंदरिकमर्शसं कासिकं श्वासिकं शोफवन्तं शूनमुखं शूनहस्तं शूनपादं शटितहस्तांगुलिकं शटितपादांगुलिकं शटितकर्णनासिकं रसिकया च / पूयेन च थिविथिवायमानं व्रणमुखकृम्युत्तद्यमानप्रगलत्पूयरुधिरं लालाप्रगलत्कर्णनासम्, अभीक्ष्णं 2 पूयकवलाँश्च रुधिरकवलाँश्च कृमिकवलाँश्च वमन्तं कष्टानि करुणानि विस्वराणि कूजन्तं मक्षिकाप्रधानसमूहेनान्वीयमानमार्गं स्फुटितात्यर्थशीर्षं दंडिखंडवसनं खंडमल्लकखंडघटकहस्तगतं गेहे 2 देहिबलिकया वृत्तिं कल्पयन्तं पश्यति 2 तदा भगवान् गौतमः उच्चनीचमध्यमकुलान्यटति यथापर्याप्तं गृह्णाति 2 पाटलिपंडात् प्रतिनिष्क्रामति 2 यत्रैव श्रमणो भगवान भक्तपानमालोचयति भक्तपानं प्रतिदर्शयति 2 श्रमणेनाभ्यनुज्ञातो सन् बिलमिव पन्नगभूतः आत्मनाऽऽहारमाहारयति, संयमेन तपसा, आत्मानं भावयन् विहरति। पदार्थ-तेणं-कालेणं २-उस काल, और उस समय में। भगवं-भगवान् / गोतमे-गौतम। तहेव-तथैव अर्थात् पूर्व की भान्ति। जेणेव-जहां-जिधर। पाडलिसंडे-पाटलिषंड। णगरे-नगर था। तेणेव-वहां। उवागच्छति २-आते हैं, आकर। पाडलिसंडं-पाटलिपंड। णगरं-नगर में। पुरथिमेणंपूर्व दिशा के। दारेणं-द्वार से। अणुप्पविसति-प्रवेश करते हैं। तत्थ णं-वहां पर। एगं पुरिसं-एक पुरुष को। पासति-देखते हैं जो कि। कच्छुल्लं-कंडू-खुजली के रोग से युक्त। कोढियं-कुष्ठी-कुष्ठरोग वाला। दाओयरियं-जलोदर रोग वाला। भगंदरियं-भगंदर का रोगी। अरिसिल्लं-अर्शस-बवासीर का रोगी। कासिल्लं-कास का रोगी। सासिल्लं-श्वास रोग वाला। सोसिल्लं-शोफयुक्त अर्थात् शोफ-सूजन का रोगी। सूयमुहं-शूनमुख-जिस के मुख पर सोजा पड़ा हुआ हो। सूयहत्थं-सूजे हुए हाथों वाला। सूयपायं-सूजे हुए पांव वाला। सडियहत्थंगुलियं-जिस के हाथों की अंगुलियां सड़ी हुई हैं। सडियपायंगुलियं-जिस के पैरों की अंगुलियां सड़ी हुई हैं। सडियकण्णनासियं-जिस के कान और नासिका सड़ गए हैं। रसियाए य-रसिका-व्रणों से निकलते हुए सफेद गन्दे पानी से। पूएण य-तथा पीव से। थिविथिवंतं-थिवथिव शब्द से युक्त / वणमुहकिमिउत्तुयंतपगलंतपूयरुहिरं-कृमियों से उत्तुद्यमानअत्यंत पीड़ित तथा गिरते हुए पूय-पीव और रुधिर वाले व्रणमुखों से युक्त / लालापगलंतकण्णनासंजिस के कान और नाक क्लेदतन्तुओं-फोड़े के बहाव की तारों से गल गए हैं। अभिक्खणं २-पुनः- . 1. अर्शासि अस्य विद्यन्ते इति अर्शसः तमितिभावः अर्थात् बवासीर का रोगी। . 556 ] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध