________________ "-पारणयंसि जाव रीयन्ते-" यहां पठित जाव-यावत् पद से-तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे पाडलिसंडे णगरे उच्चनीयमज्झिमाणि कुलाणि घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए-इन पदों का ग्रहण करना चाहिए। अर्थात् यावत् पद-आप श्री से आज्ञा प्राप्त किया हुआ मैं पाटलिषंड नगर के उच्च-धनी, नीच-निर्धन और मध्यम-न नीच तथा न उच्च अर्थात् साधारण कुलों के सभी घरों में भिक्षा के लिए-इन भावों का परिचायक है। "-कच्छुल्लं जाव कप्पेमाणं-" यहां पठित जाव-यावत् पद से पीछे पढ़े गए "-कोढियंदाओयरियं-" से लेकर "-देहंबलियाए वित्तिं-" इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। तथा "-चिन्ता-" शब्द से तृतीय अध्याय में पढ़े गए "-अहो णं इमे पुरिसे पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कन्ताणं-" से लेकर"-नरयपडिरूवियं वेयणं वेएति-" यहां तक के पदों का ग्रहण करना चाहिए। "-पुव्वभवपुच्छा-" यह पद प्रथम अध्याय में पढ़े गए "-से णं भंते ! पुरिसे पुव्वभवे के आसि?-" से लेकर "-पुरा पोराणाणं जाव विहरति-" यहां तक के पदों का परिचायक है। ____अब गौतम स्वामी के पूर्वभवसम्बन्धी प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने जो कुछ फरमाया अग्रिमसूत्र में उस का वर्णन किया जाता है मूल-एवं खलु गोतमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूदीवे दीवे भारहे वासे विजयपुरे णाम णगरे होत्था, रिद्ध / तत्थ णं विजयपुरे णगरे कणगरहे णामं राया होत्था। तस्स णं कणगरहस्स रण्णो धन्नंतरी णामं वेज्जे होत्था, अटुंगाउव्वेदपाढए तंजहा-१-कोमारभिच्चं,२-सालागे, ३-सल्लहत्ते, ४-कायतिगिच्छा,५-जंगोले,६-भूयविजा, ७-रसायणे,८-वाजिकरणे। सिवहत्थे सुहहत्थे लहुहत्थे।ततेणं से धनंतरी वेजे विजयपुरेणगरे कणगरहस्स रण्णो अन्तेउरे य अन्नेसिंच बहूणं राईसर० जाव सत्थवाहाणं अन्नेसिं च बहूणं दुब्बलाण य गिलाणाण य वाहियाण य रोगियाण य सणाहाण य अणाहाण य समणाण य माहणाण य भिक्खुयाण य कप्पडियाण य करोडियाण य आउराण य अप्पेगतियाणं मच्छमंसाइं उवदिसति, अप्पेगतियाणं कच्छभमंसाई अप्पेगतियाणं गाहमंसाइं अप्पेगतियाणं मगरमंसाइं अप्पेगतियाणं सुसुमारमंसाई अप्पेगतियाणं अयमसाइं एवं एल-रोज्झ-सूयर-मिग-ससय-गोमहिसमंसाइं, अप्पेगतियाणं तित्तिरमंसाइं, वट्टक-लावक-कवोत-कुक्कुड प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [569