________________ "-पढमाए पोरिसीए जाव पाडलिसंडं-" इस पाठ में उल्लिखित जाव-यावत् पद से द्वितीय अध्याय में पढ़े गए "-सज्झायं करेइ, बीयाए पोरिसीए झाणं झियाति, तइयाए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभंते मुहपोत्तियं पडिलेहेइ-" इत्यादि पाठ का ग्रहण समझना चाहिए। अन्तर मात्र इतना है कि वहां वाणिजग्राम नामक नगर का उल्लेख है जब कि प्रस्तुत में पाटलिषंड नगर का। शेष वर्णन समान ही है। ___ "-कच्छुल्लं तहेव जाव संजमे विहरति-" यहां पठित तहेव-तथैव पद उसी तरह अर्थात् जिस तरह पहले पूर्व दिशा के द्वार से प्रवेश करते हुए भगवान् गौतम ने एक कच्छूमान् पुरुष को देखा था, उसी तरह दक्षिण दिशा के द्वार से प्रवेश करते हुए भी उन्होंने उस कच्छूमान् पुरुष को देखा-इस भाव का परिचायक है। तथा जाव-यावत् पद से पीछे लिखे गए "-कोढियं दाओयरियं भगंदरिअं-" से लेकर "-आहारमाहारेइ-" यहां तक के पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। तथा "-संजमे-" यहां के बिन्दु से भी पीछे पढ़े गए "-णं तवसा अप्पाणं भावेमाणे-" इन पदों का ग्रहण समझना चाहिए। ___ -छट्ट०-यहां के बिन्दु से "-क्खमणपारणगंसि-" इस पद का ग्रहण समझना चाहिए। तथा-तहेव जाव पच्चस्थिमिल्लेणं-यहां पठित तहेव-तथैव यह पद द्वितीय अध्याय में संसूचित किए गए"-उसी तरह अर्थात् बेले के पारणे के दिन प्रथम प्रहर में स्वाध्याय करते हैं, द्वितीय प्रहर में ध्यान करते है-" आदि भावों का परिचायक है। तथा जाव-यावत् पद से द्वितीय अध्याय में ही लिखे हुए "-पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ-से लेकर-पुरओ रियं सोहेमाणे-इत्यादि पदों का ग्रहण समझना चाहिए।" -कच्छु०-तथा-चउत्थं पि छट्ट०-यहां का प्रथम बिन्दु इसी अध्याय में पूर्व में उल्लिखित हुए "-ल्लं कोढियं-" इत्यादि पदों का संसूचक है। तथा दूसरे बिन्दु से संसूचित पाठ ऊपर लिखा जा चुका है। तथा –उत्तरेणं०-यहां के बिन्दु से-दुवारेणं अणुप्पविसमाणे तं चेव पुरिसं कच्छुल्लं जाव पासति पासित्ता-इन पदों का ग्रहण करना चाहिए। -अज्झथिए 5 समुप्पन्ने- यहां पर दिए गए 5 के अंक से विवक्षित पाठ की सूचना द्वितीय अध्याय में की जा चुकी है। तथा-पोराणाणं जाव एवं वयासी-यहां पठित जावयावत् पद तृतीय अध्याय में लिखे गए-दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कन्ताणं-इत्यादि पदों का परिचायक है। अन्तर मात्र इतना है कि वहां पुरिमताल नगर का उल्लेख है, जब कि प्रस्तुत में पाटलिषंड का। 568] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध