________________ . (8) वाजीकरण-अशक्त पुरुष को घोड़े के समान शक्तिशाली बनाने के साधनों का जिस में वर्णन किया गया हो, अर्थात् वीर्यवृद्धि के उपायों का जिस में विधान किया गया हो, उस शास्त्र को वाजीकरण कहते हैं। यह शास्त्र अल्पवीर्य को अधिक तथा पुष्ट करने के लिए उपयुक्त होता है। अवाजिनो वाजिनः करणं वाजीकरणं शुक्रवर्द्धनेनाश्वस्येव करणमित्यर्थः, तदभिधायकं शास्त्रं वाजिकरणं, तद्धि अल्पक्षीणविशुष्करेतसामाप्यायनप्रसादोपजनननिमित्तं प्रहर्षजननार्थं चेति। . इस के अतिरिक्त मूल पाठ में धन्वन्तरि वैद्य के लिए-शिवहस्त शुभहस्त और लघुहस्त ये तीन विशेषण दिए हैं। इन विशेषणों से ज्ञात होता है कि रोगियों की चिकित्सा में वह बड़ा ही कुशल था। जिस रोगी को वह अपने हाथ में लेता, उसे अवश्य ही नीरोगरोगरहित कर देता था, इसी लिए वह जनता में शिवहस्त-कल्याणकारी हाथ वाला, शुभहस्तप्रशस्त और सुखकारी हाथ वाला, और लघुहस्त-फोड़े आदि के चीरने फाड़ने में जो इतना सिद्धहस्त था कि रोगी को चीरने एवं फाड़ने के कष्ट का अनुभव नहीं होने पाता था, ऐसा, अथवा जिस का हाथ शीघ्र काम या आराम करने वाला हो, इन नामों से विख्यात हुआ। तथा राजवैद्य धन्वन्तरि के पास छोटे, बड़े, धनिक और निर्धन सभी प्रकार के व्यक्ति चिकित्सा के निमित्त उपस्थित रहते, जिन में महाराज कनकरथ के रणवास की रानियों के अतिरिक्त मांडलिक राजा, प्रधानमंत्री, नगर के सेठ साहूकार-बड़े महाजन या व्यापारी भी रहते थे। . दुर्बल, ग्लान आदि पदों की व्याख्या निम्नोक्त है (1) दुर्बल-कृश अर्थात् बल से रहित व्यक्ति का नाम है। २-१ग्लान-शोकजन्य पीड़ा से युक्त अर्थात् जिस का हर्ष क्षीण हो चुका हो, उसे ग्लान कहते हैं। ३-२व्याधितचिरस्थायी कोढ़ आदि व्याधियों से युक्त व्याधित कहलाता है। अथवा-सद्यप्राणघातकशीघ्र ही प्राणों का नाश करने वाले ज्वर, श्वास, दाह, अतिसार अर्थात् विरेचन आदि व्याधियों से युक्त व्यक्ति व्याधित कहा जाता है। यदि बाहियाणं-इस पद का बाधितानां-ऐसा शब्द का-वह शास्त्र जिस में यह विवेचन हो कि पदार्थों मैं कौन-कौन से तत्त्व होते हैं और उन के परमाणुओं में परिवर्तन होने पर पदार्थों में क्या परिवर्तन होता है-ऐसा अर्थ पाया जाता है। परन्तु प्रस्तुत में रसायन शब्द का टीकानुसारी ऊपर लिखा हुआ अर्थ ही सूत्रकार को अभिमत है। 1. गिलाणाणं-त्ति क्षीणहर्षाणां शोकजनितपीड़ानामित्यर्थः। 2. वाहियाणं-त्ति व्याधिश्चिरस्थायी कुष्ठादिरूपः स संजातो येषां ते व्याधिताः। बाधिता वा उष्णादिभिरभिभूताः अतस्तेषाम् / अथवा-व्याधितानां-सद्योघाति-ज्वरश्वासकासदाहातिसार भगंदरशूलाजीर्णव्याधियुक्तानामित्यर्थः। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [579