________________ आस्वादयन् 4 विहरति / ततः स धन्वन्तरिर्वैद्यः एतत्कर्मा 4 सुबहु पापं कर्म समर्म्य द्वात्रिंशतं वर्षशतानि परमायुः पालयित्वा कालमासे कालं कृत्वा षष्ठ्यां पृथिव्यामुत्कर्षण द्वाविंशतिसागरोपमस्थितिकेषु नैरयिकेषु नैरयिकतयोपपन्नः। पदार्थ-एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। गोतमा !-हे गौतम ! / तेणं कालेणं तेणं समएणंउस काल तथा उस समय। इहेव-इसी। जंबूद्दीवे-जम्बूद्वीप नामक। दीवे-द्वीप के अन्तर्गत। भारहे वासे-भारत वर्ष में। विजयपुरे-विजयपुर। णाम-नामक। णगरे-नगर। होत्था-था, जो कि। रिद्धऋद्ध-भवनादि के आधिक्य से युक्त, स्तिमित-स्वचक्र और परचक्र के भय से रहित, एवं समृद्ध-धन धान्यादि से परिपूर्ण था। तत्थ णं-उस। विजयपुरे-विजयपुर। णगरे-नगर में। कणगरहे-कनकरथ। णाम-नाम का। राया-राजा। होत्था-था। तस्स णं-उस। कणगरहस्स-कनकरथ। रण्णो-राजा का। धनंतरी-धन्वंतरि। णाम-नामक।वेज्जे-वैद्य / होत्था-था, जो कि। अटुंगाउव्वेयपाढए-अष्टांग आयुर्वेद का अर्थात् आयुर्वेद के आठों अंगों का पाठक-ज्ञाता-जानकार था। तंजहा-जैसे कि।१-कोमारभिच्चं१-कौमारभृत्य-आयुर्वेद का एक अंग जिस में कुमारों के दुग्धजन्य दोषों का उपशमनप्रधान वर्णन हो। २-सालागे-२-शालाक्य-चिकित्साशास्त्र-आयुर्वेद का एक अंग जिस में शरीर के नयन, नाक आदि ऊर्ध्वभागों के रोगों की चिकित्सा का विशेषरूप से प्रतिपादन किया गया हो। ३-सल्लहत्ते-३शाल्यहत्य-आयुर्वेद का एक अंग जिस में शल्य-कण्टक, गोली आदि निकालने की विधि का वर्णन किया गया हो।४-कायतिगिच्छा-४-कायचिकित्सा-शरीरगत रोगों की प्रतिक्रिया-इलाज तथा उसक प्रतिपादक आयुर्वेद का एक अंग। ५-जंगोले-५-आयुर्वेद का एक विभाग जिस में विषों की चिकित्सा का विधान है। ६-भूयवेज्जे-६-भूतविद्या-आयुर्वेद का वह विभाग जिस में भूतनिग्रह का प्रतिपादन किया गया है। ७-रसायणे-७-रसायन-आयु को स्थिर करने वाली और व्याधि-विनाशक औषधियों के विधान करने वाला प्रकरणविशेष। ८-वाजीकरणे-८-वाजीकरण-बलवीर्यवर्द्धक औषधियों का विधायक आयुर्वेद का एक अंग। तते णं-तदनन्तर / से-वह। धन्नंतरी-धन्वंतरि। वेज्जे-वैद्य, जो कि। सिवहत्थे-शिवहस्त-जिसका हाथ शिव-कल्याण उत्पन्न करने वाला हो। सुहहत्थे-शुभहस्त-जिस का हाथ शुभ हो अथवा सुख उपजाने वाला हो। लहुहत्थे-लघुहस्त-जिस का हाथ कुशलता से युक्त हो। विजयपुरे-विजयपुर / णगरे-नगर में। कणगरहस्स-कनकरथ। रणो-राजा के। अंतेउरे य-अन्त:पुर में रहने वाली राणी, दास तथा दासी आदि। अन्नेसिं च-और अन्य। बहूणं-बहुत से। राईसर-राजाप्रजापालक, ईश्वर-ऐश्वर्य वाला। जाव-यावत्। सत्थवाहाणं-सार्थवाहों-संघ के नायकों को तथा। अन्नेसिं च-और अन्य। बहूणं-बहुत से। दुब्बलाण य-दुर्बलों तथा। गिलाणाण-ग्लानों-ग्लानि प्राप्त करने वालों अर्थात् किसी मानसिक चिन्ता से सदा उदास रहने वालों / य-और। रोगियाण-रोगियों। यतथा / वाहियाण य-व्याधिविशेष से आक्रान्त रहने वालों तथा। सणाहाण-सनाथों / य-और / अणाहाणअनाथों। य-और। समणाण-श्रमणों। य-तथा। माहणाण-ब्राह्मणों। य-और। भिक्खुयाण-भिक्षुकों। य-तथा। करोडियाण-करोटिक-कापालिकों-भिक्षुविशेषों। य-और। कप्पडियाण-कार्पटिकों-भिखमंगों अथवा कन्थाधारी भिक्षुओं। य-तथा। आउराण य-आतुरों की (चिकित्सा करता है, और इन में से)। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [571