________________ उस नगर के पश्चिमदिशा के द्वार से प्रवेश किया तो वहां पर भी उसी पुरुष को देखा और चौथी बार जब मैं बेले का पारणा लेने के निमित्त पाटलीपुत्र में उत्तरदिगद्वार से प्रविष्ट हुआ तो वहां पर भी कंडू के रोग से युक्त यावत् भिक्षावृत्ति करते हुए उसी पुरुष को देखता हूँ। उसे देख कर मेरे मानस में यह विचार उत्पन्न हुआ कि अहो ! यह पुरुष पूर्वोपार्जित अशुभ कर्मों का फल पा रहा है, इत्यादि। भगवन् ! यह पुरुष पूर्व भव में कौन था जो इस प्रकार के भीषण रोगों से आक्रान्त हुआ जीवन बिता रहा है? गौतम स्वामी के इस प्रश्न को सुनकर भगवान् महावीर स्वामी उस का उत्तर देते हुए प्रतिपादन करने लगे। टीका-हम पूर्व सूत्र में देख चुके हैं कि 'षष्ठक्षमण-बेले के पारणे के निमित्त पाटलिषंड नगर में भिक्षार्थ गए हुए गौतम स्वामी ने पूर्वदिग्द्वार से प्रवेश करते हुए एक ऐसे व्यक्ति को देखा था, जिस की घृणित अवस्था का वर्णन करते हुए हृदय कांप उठता है। प्रस्तुत सूत्र में भी पूर्व की भान्ति गौतम स्वामी के दूसरी बार दक्षिण दिशा, तीसरी बार पश्चिम दिशा और चौथी बार उत्तर दिशा के द्वारों से नगर में प्रवेश करते समय उसी पुरुष को देखने का उल्लेख किया गया है। पाटलिपंड नगर के चारों दिशाओं के द्वारों से प्रवेश करते हुए गौतम स्वामी को चौथी बार अर्थात् उत्तरदिग् द्वार से प्रवेश करने पर भी जब उसी पुरुष का साक्षात्कार हुआ तब उस की नितान्त दयनीय दशा को देख कर उनका दयालु मन करुणा के मारे पसीज उठा। वे उस की भयंकर अवस्था को देखकर उस के कारणभूत प्राक्तन कर्मों की ओर ध्यान देते हुए मन ही मन में कह उठते हैं कि अहो ! यह व्यक्ति पूर्वकृत अशुभ कर्मों के प्रभाव से कितनी भयंकर यातना को भोग रहा है ! इस में संदेह नहीं कि नरकगति में अनेक प्रकार की कल्पनातीत भीषण यातनाओं का उपभोग करना पड़ता है, परन्तु इस मनुष्य की जो इस समय दशा हो रही है, वह भी नारकीय यातनाओं से कम नहीं कही जा सकती, इत्यादि। . इस प्रकार उस मनुष्य के करुणाजनक स्वरूप से प्रभावित हुए गौतम स्वामी नगर से आहारादि सामग्री लेकर वापस आते हैं और उसी दुःखी व्यक्ति की दशा का वर्णन करने के अनन्तर उस के पूर्वभव का वृत्तान्त जानने की इच्छा से प्रेरित हुए भगवान् से उसे सुनाने की अभ्यर्थना करते हैं, तथा गौतम स्वामी की इस अभ्यर्थना को मान देते हुए श्रमण भगवान् महावीर स्वामी उस व्यक्ति के पूर्वभव का वर्णन करते हैं। यह प्रस्तुत सूत्रगत वर्णन का सारांश दिनों के उपवास को षष्ठक्षमण कहते हैं / जैन जगत में यह बेले के नाम से विख्यात है। इसे षष्ठतप भी कहा जाता है। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [567