________________ . (क) लालामुख-जिस का मुख लाला अर्थात् लार से युक्त रहता है, उसे लालामुख कहते हैं। तात्पर्य यह है कि उस व्यक्ति के मुख से लारें बहुत टपका करती थीं। - (ख ) प्रगलत्कर्णनास-जिस के कान और नासिका बहुत गल चुके थे, ऐसा व्यक्ति प्रगलत्कर्णनास कहलाता है। १८-पूयकवल-पूय-पीव को कहते हैं। कवल शब्द-१-उतनी वस्तु जितनी एक बार में खाने के लिए मुंह में रखी जाए, ग्रास, तथा २-पानी आदि उतना पदार्थ जितना मुंह साफ करने के लिए एक बार मुंह में लिया जाए कुल्ली, इन दो अर्थों का परिचायक है। पीव के कवल को पूयकवल और इसी भान्ति रुधिर-खून के कवल को रुधिरकवल, तथा कृमियों-कीड़ों के कवल को कृमिकवल कहते हैं। १९-कष्ट-क्लेशोत्पादक-इस अर्थ का बोध कराने वाला कष्ट शब्द है। २०-करुण-करुणा शब्द उस मानसिक दुःख का परिचायक है जो दूसरों के दुःख के ज्ञान से उत्पन्न होता है और उनके दुःख को दूर करने की प्रेरणा करता है। अर्थात् दया का नाम करुणा है। करुणा को उत्पन्न कराने वाला करुण कहलाता है। २१-विस्वर-दीनतापूर्ण वचन विस्वर कहलाता है, अथवा खराब आवाज़ को विस्वर कहा जाता है, अर्थात् उस पुरुष की आवाज़ बड़ी दीनतापूर्ण थी अथवा बड़ी कर्णकटु ' प्रस्तुत में-कट्ठाइंकलुणाई वीसराइं-इन पदों के साथ-वयणाई-इस विशेष्य पद का अध्याहार किया जाता है। तब-कष्टोत्पादक वचन, करुणोत्पादक वचन एवं विस्वर वचन-कूजत् अर्थात् अव्यक्त रूप से बोलता हुआ, यह अर्थ निष्पन्न होता है। . २२-मक्षिकाओं के चडगर पहगर से अन्वीयमानमार्ग-अर्थात् मक्षिका मक्खी का नाम है। चडगर और पहगर ये दोनों शब्द कोषकारों के मत में देश्य-देशविशेष में बोले जाने वाले हैं। इन में चडगर शब्द प्रधानार्थक और पहगर शब्द समूहार्थक है। अन्वीयमानमार्ग शब्द-जिस के पीछे-पीछे चल रहा है, इस अर्थ का परिचायक है। अर्थात् जिस के पीछे-पीछे मक्षिकाओं का प्रधान-विस्तार वाला समूह चला आ रहा है वह, अथवा मक्षिकाओं के वृन्दों-समूहों के पहकर-समूह जिस के पीछे चले आ रहे हैं वह / तात्पर्य यह है कि उस व्यक्ति के पीछे मक्षिकाओं के झुण्ड के झुण्ड लगे हुए थे। ... २३-फुट्टहडाहडसीसे-इस पद की व्याख्या अभयदेवसूरि के शब्दों में-फुटुं-त्ति 1. मक्षिकाणां प्रसिद्धानां चटकरः प्रधानः विस्तारवान् यः प्रहकरः समूहः स तथा, अथवामक्षिकाणां चटकराणां तद्वन्दानां यः प्रहकरः स तथा, तेन।अन्वीयमानमार्गमनुगम्यमानमार्गम्। मलाविलो हि वस्तु प्रायो मक्षिकाभिरनुगम्यत एवेति भावः। (वृत्तिकारः) प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [561