________________ . "-कच्छुल्लं कोढियं-" इत्यादि पदों की व्याख्या निम्नोक्त है .१-कच्छूमान्-कच्छू-खुजली का नाम है।खुजली रोग से आक्रान्त व्यक्ति कच्छूमान् कहलाता है। कच्छू का ही दूसरा नाम कण्डू है। २-कुष्ठिक-कुष्ठ कोढ़ का नाम है। कोढ़ के रोग वाला व्यक्ति कुष्टिक कहलाता ३-दकोदरिक-दकोदर जलोदर रोग का नाम है। उस रोग वाले व्यक्ति को दकोदरिक कहते हैं। ___-दाओयरियं-के स्थान पर-दोउयरियं-ऐसा पाठ भी उपलब्ध होता है। इसका अर्थ है-द्वयोदरिकं-द्वे उदरे इव उदरं यस्य स तथा तं जलोदररोगयुक्तमित्यर्थः-अर्थात् उदरपेट में जल अधिक होने के कारण जिस का उदर दो उदरों के समान प्रतीत होता हो उसे द्वयोदरिक कहते हैं। दूसरे शब्दों में द्वयोदरिक को जलोदरिक कहा जाता है। ४-भगंदरिक-भगंदर रोगविशेष का नाम है। भगंदर रोग वाला व्यक्ति भगंदरिक कहा जाता है। ५-अर्शस-अर्श बवासीर का नाम है। अर्श का रोगी अर्शस कहलाता है। ६-कासिक-कास रोग वाले व्यक्ति को कासिक कहते हैं। ७-श्वासिक-श्वास वाले रोगी का नाम श्वासिक है। उपरोक्त रोगों के सम्बन्ध में प्रथम अध्याय में प्रकाश डाला जा चुका है। ८-शोफवान्-शोफ-सूजन के रोग से आक्रान्त व्यक्ति का नाम शोफवान् है। ९-शूनमुख-जिस का मुख सूजा हुआ हो उसे शूनमुख कहते हैं। १०-शूनहस्त-जिस के हाथ सूजे हुए हों वह शूनहस्त कहलाता है। ११-शूनपाद-जिस के पांव सूजे हुए हों उस को शूनपाद कहा जाता है। १२-शटितहस्तांगुलिक-जिस के हाथों की अंगुलियां सड़ गई हैं, उसे शटितहस्तांगुलिक कहा जाता है। सड़ने का अर्थ है-किसी पदार्थ में ऐसा विकार उत्पन्न होना कि जिस से उस में दुर्गन्ध आने लग जाए। १३-शटितपादांगुलिक-जिस के पांव की अंगुलियां सड़ जायें, वह शटितपादांगुलिक कहलाता है। १४-शटितकर्णनासिक-जिस के कर्ण-कान और नासिका-नाक सड़ जाएं उसे शटितकर्णनासिक कहते हैं। . १५-रसिका और पूय से थिविथिवायमान-अर्थात् व्रण से निकलता हुआ दुर्गन्धपूर्ण 'प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [559